Page 42 - Darshika 2020
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जीवन का स्वऱूप ज्ञात ह मुझको।
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ववहदत ह,
न होगा सब तुझसा,
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परतु आर्ा ह,
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खुद को तुझसा बना लूगी,
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प्रततक ू ल को अनुक ू ल बना लूगी।
कोभर्र् रहगी,
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घटा सक ूं इस अंतर को,
स्वीकायषता योग्य बना सक ूं खुद को,
अपने अश्स्तत्वता क साथ।
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प्रयास रहगा,
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थाम रख सक ूं
जीवन की डोर को,
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मुस्क ु राहट क साथ।
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श्जंदाहदल क साथ।
स्वच्छदता क साथ।
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खत्म न हो तलार् कभी,
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खुद को तरार्न की।
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