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अजीब दु नया का चलन दखा
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अजीब दु नया का चलन दखा,
ु
कछ पाने क लए अपना ईमान बदलते दखा।
जाने ा पाने क इ ा,
जाने ा खो जाने का डर
हर आदमी को यह
गर गट क तरह रंग बदलते दखा
अजीब दु नया का चलन दखा।
तरस आता ह खुदगज दु नया क द ूर पर,
गैर को तो छोड़ो अपन को ज़मीर से गरते दखा!
अजीब दु नया का चलन दखा।
दखकर ऐसा चलन,िदल ख़ून क आंसू रो पड़ा,
ं
म ार दु नया को हर आंसू पर हसते दखा।
अजीब दु नया का चलन दखा…