Page 91 - lokhastakshar
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"अSछाई क अहात म" वे सार" पु
तक
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9जनम5 दज़ ह अSछाई क फलसफ
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बुराई क7 जय प8र9
थितय- पर, हालात- पर
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अSछाई अपना काय करती ह पथर"ली राह
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अSछाई नह"ं चीख़ पाती
Q
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चलती हुई मौजूदा समय म *वेश करती ह
आवाज़ उठाते ह"
मुँह पर रख द" गई हथली
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एकदम त2हा
दूसर" तरफ #करदार पर दाग
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अकले या<ा म
वाथ , लोलुपता,
अंध आंिधयां से जुझते हुए
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चापलूसी अंतः िलqय2तरण पर उतर आएंग
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भीगती ह उसक7 शाख
बस, स#दय- तक आवाज़ को दवाना था
पdा पdा गीला
ै
कहता ह 'अ9uनपथ '
अSछाई कछ भी नजरअंदाज नह"ं करती
ु
वातावरण म5 जब#क ?वरोधाभास ह
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उसे 9जंदा रहना था
अपने #करदार क साथ
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टूट कर जब ?बखरती ह
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यह" नह"ं समझ पाई बुराई
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कौन दता ह सहारा
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भटकती ह दर दर
अSछाई को िमलती ह
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लार टपकात भे#ड़ए क जबड़
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शक क घेर- म5 सबको समटते हुए
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दह क पार
अSछाई जैसे नगर िनगम क7 नगरवधू
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तार तार करती िनगाह
हद थी कई कई
द"वार पर लटकती
ुं
मानिसकता क7 कठाओं क7
ं
झूठ5 शbद- क7 Xृखला
?वकिसत स यताओं क7
*s िच¯ दागते हुए
ं
बुराई अपना रग
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शू2य क आभास म
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#दखाती ह
दुखाती अपनी नस
न जाने #कतने छल
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फरब से ठगती ह अSछाई को
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करदती कई कई सवाल
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अSछाई समाज क आईने म
अSछाई का दमघ-ट दती ह
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िनव ~ थी एक
और ईमानदार" से
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अील-ील क बीच
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Q
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सा#हFय क7 जड़ #हला दती ह
महज }?y का फक
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#हलता ह आदमी
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#क अSछाई को समाज क आईने म
और आदमी का वजूद
Q
और ?पछड़ना ह
मई – जुलाई 91 लोक ह
ता र