Page 93 - lokhastakshar
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त -?व9 अंधर म "मुझ भी िमलता जीवन"
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#फर भी
वीकाय नह"ं ह
मQ हो गई हूँ मौन
?पर रह"
तbध, सम?प त
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धानी क संग
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अंधर म5 तुम ?बन
जैसे कोUहू का बैल
बह उतरा
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,या पाता ह ?
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मांग से वह लाल रग
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थक कर झुक जाती ह
जैसे अXु लहू
?ववाइयाँ फट जाती ह
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रोज़ाना िगर रह" ह बूँद बूँद
उमड़ पड़ा सागर
भव- भंवर
प8र)मा लगाते हुए
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उतन बवंडर बन
बुदबुदाती ह -"कब मु?^ िमलेगी "
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जैसे चू रहा हो मोम िनश #दन
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ह अ2नदाता !
आँच झर रह" ह बdी स
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ह *भु !
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इतने फल 9खले ,या8रय- म
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बड़ «ामक शbद
Gय- उगली पर अं#कत
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बैल क मुँह से उSचा8रत हुए
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अब वह च,कर नह"ं लगाती ह
पर एकदम जज र शाख
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9 ितज ताक रह" ह
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दहलीज़ पर खड़" सोचती ह
चोखट पर कदम रखते ह"
अनेक उFपीड़न क7
छ2नी हुआ »दय
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अवधारणा क ?वषय म
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कहाँ जाऊ ?
और #फर कम ठ #दन- का
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कौन 9ज6मदार ह
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#हसाब-#कताब करने लगती ह
अशेष मृFयु
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िलखती ह दो और दो चार नह"ं
बाईस वीं सद"
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अकली या<ा
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हर एक }?y मुझ ऐस दखती ह
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जैस मQ अपरािधनी हूँ
मई – जुलाई 93 लोक ह
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