Page 97 - lokhastakshar
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बस अगले मोड़ पर
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9ज़ंदगी आतुर ह गल िमलने को
#फर (6)
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#कसी इबारत को द8रया न
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चाक से गाढ़ा रग दना जब पूछा
,यूँ#क शहर का हाल
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अSछ नह"ं लगत शहर िसकड़ने लगा
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आँख क सुरमे गाल- पर ढलत जंगल न
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और जब पूछा
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इक़ क ख़त को शहर का हाल
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बा8रश क दुपट म5 िछपाना शहर फलने लगा
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ता#क शहर न
पानी म5 धुल जाए जब सोचा
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?बछड़ने क लÇज़ सार द8रया होना जंगल होना
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यूँ ह" द8रया सहमा जंगल उदास हुआ !
9ज़ंदगी खोल ना बैठे कह"ं
िशकायत- क पुिलंद अपन
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उदास मन पर िलबास क7 तरह
थोड़ा झूठ कह"ं
मई – जुलाई 97 लोक ह
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