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               कबूतरा िजनको पु#लस जब तक 9कसी भी जुम  क          तो साल' यह!ं पड़ी रह!। घरवाल' को डर क मार
                                                                                             7
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               #लए  चाह  जो  उSह'न  9कया  या  न  9कया  हो,      बताया  भी  नह!ं  9क  वह  सोचग  9क  यह  कहां
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                                                                         7
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               मारपीट  करक  जेल  म  ठल  दती  थी  ले9कन  अब      कबूतरा  म  चल!  गई  जो  जSमजात  अपराधी  हg।
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               हमन  संकnप  #लया  ह  9क  हम  यह  अSयाय           अं–ेज' क समय स ह! कबूतर' पर अपराधी होन
                                                            े
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               कबूतरा  लोग'  क  साथ  नह!ं  होन  दगे।  जब  इतन   का  लेबल  च पा  कर  1दया  गया।  इSह  9$#मनल
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               बड़े  अUधकार!  न  एक  पूर!  जनजा%त  को  Sयाय
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               1दलान  का  संकnप  एक  9कताब  पढ़कर  #लया  तो
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               मुझे लगा 9क असर तो पड़ता ह। बदलाव धीर-धीर
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               होते ह, और ह'ग, ऐसी ह! उJमीद होनी चा1हए।
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               मीना	ी  :  आज  भी  बड़े  पैमान  पर  नवलेखन  हो
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               रहा ह। नए लेखक/लेLखकाए उभर कर आ रह! हg।
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               नई 1हंद! क> य अलग बयार चल %नकल! ह। आज
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               क समय क लेखन और सृजन क> क1ठनाइय' को
               लेकर आप &या कहना चाहगी?
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               मै3यी : सृजन क> क1ठनाइयां उनक सामन ह ह!
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               नह!ं,  5बलक ु ल  भी  नह!ं  ह।  आज  क  लेखक  बड़े
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               आराम स #लखते हg। उSह बीहड़' म भी रहन क>
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               जdरत नह!ं। मानो सारा भारतवष  हमार नगर' या
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               महानगर'  म  ह!  बस  रहा  तो  ऐसा  लगता  ह,  तो
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               नव लेखक' को &या 1द&कत ह? सब सुPवधाए हg।
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               मेरा यह कहना ह 9क हम लेखक सुPवधा भोगी हो         šाइब ह! कहा जाता ह। यह जुम  कर या ना कर,
               गए  हg।  हम पानी  चा1हए।  5बजल!  चा1हए।  ए.सी.   अपराध हो ना हो ले9कन उनका नव जSमा बfचा
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               चा1हए,  &या-&या  नह!ं  चा1हए  और  जब  यह  सब     भी अपराधी माना जाएगा। तो यह सब जानन और
                                                                                                         े
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               होता  ह,  तब  सृजन  क>  राह  बनती  ह।  बाबा      समझन क #लए वहां जाना पड़ेगा। यहां 1दnल! म,
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               नागाजु न  न  अपना  नाम  या6ी  रख  #लया  था।      एसी म बैठकर, तो यह पता कर पाना मुि`कल ह।
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                                                                           ं
               लेखक क #लए तो या6ाए और खानाबदोश ह! बहत           मg  यह!  कहगी  9क  हम  लेखक'  को सुPवधाओं  क>
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               जdर! ह। अगर मg कबूतरा म ना रहती तो अnमा          आदत हो गई ह। हम कह!ं जाते भी ह तो भी यह!
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               कबूतर! #लख पाती, सवाल ह! नह!ं पैदा होता। मg      दखते ह 9क आग सुPवधाए 9कतनी #मलेगी। लेखन
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               मई – जुलाई                             18                                                                   लोक ह ता र
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