Page 21 - KV Pragati Vihar (Emagazine)
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पैगाम भाषा
जजस ददन तुम्हें लगे क्रक तुम्हारे मााँ-बाप बूढ़े जहााँ सुरमभ मनमानी?
हो गये है हााँ मााँ यही कहानी!
तो समझदारी का पररचय देते हए उन्हें वणा-वणा के फ ू ल खखले थे
ु
समझने की कोमशश करनाI झलमल कर दहमबबंदु खझले थे
अपनी परेशातनयों में अगर भूल से भी कोई हलके झोंके दहले ममले थे
भूल हो जाए लहराता था पानी
तो गुस्सा करने की वजाय अपने बचपन की
लहराता था पानी?
शरारतों को याद करनाI
हााँ हााँ यही कहानी!
उम्र के उस दौर में अगर वो तुम्हारी रफ़्तार
गाते थे खग कल-कल स्वर के
से न चल पाएाँ
सहसा एक हंस उपर से
तो उनका सहारा बन अपना लडखडाता हआ
ु
धगरा बबद्र् होकर खर शर से
पहला कदम याद करनाI
हई पिी की हातन
ु
अगर उनकी कोई इच्छा कोई चाहत बेवजह
तमन्ना सैनी
सी लगती है
XI स
तो पेट काटकर पूरी की गई तुम्हारी ख्वादहशो
को याद करना वद्र् लोग
ृ
उनके ही बनाए गए घर में अगर उन्हें कोई वृद्र् लोग होते समझदार
बबस्तर नही नसीब होता, करते सब इनका सम्मान I
तो अपनी मााँ की नरम गोद और बाप की आशीवााद सबको है देते,
बाहों के झूले को याद करना I यही है इनका वरदान I
उन्हें मााँ-बाप कहने में कोई शमा आती हो या वृद्र् लोग बढाते हौसला
कोई ऐतराज़ हो पपलाते हम उनको चाय
तो अपनी रगों में अपने बाप का खून मााँ के देते हमको राय, अच्छा
दूर् को याद करना I हआ क्रक ऐसे समझदार
ु
ज़मीन-जायदाद को लेकर अगर उनके आाँखे लोग हमने इस दुतनया में पाएI
मूाँदने का इंतजार कर रहे हो वृद्र् लोग होते हैं अच्छे ,
देते अच्छे पवचार I
तो कफ़न में जेब न लगी है न लगेगी, इस
अगर हो बीमारी हमको,
पैगाम को कमेशा याद रखना
तो देते हमको वह देसी उपचार I
दीपक झा रीत आयष
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