Page 59 - CHETNA January 2019 - March 2019FINAL_Neat FLIP
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यहाँ से जाने के बाद हमारा वववाह हो जाएर्ा. मैं अपने डैडी को मना
लूिंर्ी कक वे जज़द से जज़द हमारा वववाह कर दें.'
'बहत ज्यादा ववश्वास है तुमको अपने डैडी पर?'
ु
'क्यों नहीिं? वे मेरी कोई भी बात टालते नहीिं हैं. सदा ही मेरी खुशशयों
और इच्छाओिं के शलए जान देते हैं.'
'?'- सररता की इस बात पर तब दीपक क ु छ भी नहीिं बोला. सररता किर
भी चुप नहीिं रही. वह उससे बहत सारी बातें करती रही. वैसी भी वह
ु
बहत बोलने वाली लड़की थी. अपनी बातों से दीपक का हदल बहलाती
ु
रही. किर जब समय अगधक हो र्या और जब क्षक्षततज में चन्रमा और
भी अगधक ऊपर उठ र्या तो वह दीपक के साथ र्ोबधचन होटल में वापस
आ र्ई. आकर दोनों ने खाना खाया. खाना खाने के बाद भी वे दोनों
बड़ी रात तक जार्ते रहे. बातें करते रहे. ऐसी बातें जो के वल आपस के
स्नेह और प्यार की थीिं. जो कभी भी समाप्त होने वाली भी नहीिं थीिं और
जजनके सहारे वे दोनों बड़ी आसानी से अपने भावी जीवन के महल खड़े
कर लेते थे. दोनों एक-दूसरे के सहारे के मोहताज़ थे. आपस में दोनों को
एक-दूसरे पर असीम ववश्वास था. शायद इसीशलये कहा जाता है कक प्यार
का कोई भी धमच नहीिं होता है.
कािी रात र्ये सररता बातें करते-करते सो र्ई. अपने मन में अपने
ही दीपक के ख्यालों का सुिंदर, राजक ु मार जैसा गचि बनाकर. परन्तु
दीपक किर भी जार्ता रहा. आँखें खोले हए, कमरे की छत को तनहारते
ु
हए के वल सोचता ही रहा. सोचता रहा कक, यहाँ आर्रा से शशकोहाबाद
ु
के वल डेढ़ घिंटे का ही रास्ता है. ककतना पास उसका घर है. मर्र अब
लर्ता है ये घर उसका कोसों दूर हो चुका है. उसकी आँखों में नीिंद का
कोई भी गचन्ह नहीिं था. यूँ वह वैसे भी रातों में अक्सर जार्ा ही करता
है. शायद जार्ने की उसकी एक आदत सी पड़ र्ई है? ऐसा भी हो
सकता है कक पररजस्थयों और दुःख के तकाजों के कारि नीिंद से उसका
कोई वास्ता ही नहीिं रहा था.
एक हदन और रुक कर सररता दीपक के साथ अलीर्ढ़ लौटने को
हई तो जाने से पहले उसने ककनारी बाज़ार से जी-भर कर अपनी शौवपिंर्
ु
59 | चेतना जनवरी 2019 - माचच 2019