Page 54 - CHETNA JANUARY 2020- FEBRUARY 2020 FINAL_Neat
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नवयुवती-सा बता,व मेर तरह डेझी को भी परेशान करने लगा होगा. शाद करके ,
जद-से-जद इस घर से खसत होने का Zनण,य लेने क/ वजह भी यह हो
सकती थी. मेरा भोलापन मेर तरह गूँगा नह ं था, बिक रोज मुझसे कई सवाल
पूछने लगा था. बाईस साल क/ उ\ से आज तक तकर बन बीस साल माँ को
पZत सुख से वं}चत रहना पड़ा था. =या माँ का आवेग, आसि=तभरा यह ~प
मेर सहानुभूZत का हकदार है? इस Hकार के सQतुVलत Hiन भी सवाल> क/
भीड़ मC शाVमल होने लगे थे. =या माँ के इस बता,व को वा हयात,, बदफै ल ,
चLर*ह न, बता,व कहा जा सकता है? खैर, यह सवाल यहाँ क/ अZत?वतQ*ता क/
संकपनाओं जैसे जी मC आए वैसे इ?तेमाल करने क/ आजाद देखकर वा हयात
सा)बत हो रहा था. HगZतशीलता क/ आड़ लेकर बQधन> का, मूय> का उलंघन
करना अगर इQसान अपना अ}धकार मानने लगे तो स¿यता क/ पLरभाषा ह
नए Vसरे से Vलखनी होगी. जो क ु छ भी हो, माँ का इस तरह से अचानक अपनी
भावनामक दुZनया मC मनचाहा बदलाव लाना मुझे बुर तरह अखर रहा था.
भीतर-ह -भीतर, ZतलVमलाता हआ आोश मुझे परेशान कर रहा था. ऐसी
ु
ि?थZत मC मुझे मेरा हो?टल का छोटा-सा कमरा याद आ रहा था. मेर 8कताबC,
मेरा अके लापन, मेरा एकाQत, मेरा सुक ू न, कम-से-कम Vसफ, मेरा तो था. पढ़ाई-
Vलखाई ठक से होती है, हर तरह से ZनिiचQत था मK. अब माँ के शयनकR के
)बलक ु ल पास का डेझी का कमरा पाकर भी मेरा अपना ?वतQ* कमरा पाने क/
खुशी अनुभव करना मुिiकल लग रहा था. डेझी के ससुराल जाने के बाद माँ,
उसका Vम* और मुझमC रोज रात Vसफ, एक द वार का पदा, सहना मेर बरदाiत
के बाहर था. रोज रात का खाना खाने के बाद _वडओ ?टोर मC जाकर व=त
)बताना या घर के बाहर क/ सी ढ़य> पर बैठकर रात के यारह बजे का इQतजार
करना कोई ढंग का उपाय तो नह ं था. हालात के साथ समझौता करना अपने-
आप को लाचार बनाने-सा सहसूस हो रहा था. मK सुन नह ं सकता था, इसVलए
रा?ते पर आती-जाती कार> क/ आवाजC, लोग> क/ चहल-पहल मुझे सताती नह ं,
यह मानकर रोज रात घर क/ सी ढ़य> पर बैठकर व=त जाया करना मेर पढ़ाई
के Vलए कतई लाभदायक नह ं है,, यह मK भल -भाँZत समझ रहा था. घर का
खाना, माँ का qयार, Vल_वंग-~म मC Vसफ, मेर 8कताबC-कॉ_पयाँ, सोने के Vलए
अपना अलग कमरा, मेरा कमरा मेर पसQद से, मनचाहे ढंग से सजाने क/ पूर
आजाद , एक पल यह सब मKने दल से चाहा था. पैदा होते ह ZनयZत ने आवाज
और शद> के साथ मेरा Lरiता तोड़ दया था. अब तक मेर उ[मीदC, मेर
इoछाएँ, मेरे सपन> ने Vसफ, समझौत> क/ जुबान जानी थी. मजबूLरय> क/ जुबान
54 | चेतना प ढ़ये और आगे ब ढ़ये