Page 43 - Epatrika2020 KV2 AFA DUNDIGAL HYD
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किवता-हाय हाय गम -ि कल सहगल
क ा:-नवी 'ब'
पारा हो गया चालीस पार।
गम सर पर हुई सवार।।
आ गया फर से जून मह न ।
रह रह क बस चले पसीना।।
रात कट न, िदन ह भारी ।
गम क ह आफत जारी ।।
गम ने यॅू खेला खले ।
पंखा, कू लर, ए.सी. फल।
सिदय बार नहाएं , फर भी।
गम कह न जाय,े फर भी।
आइस म, कु भी खाई।
पर श त हुई न गम माई।
ख़रबज़ू ा, तरबज़ू ा, खीरा
ऊं ट क मंहु म जसै े जीरा।।
कर जतन ा कर उपाय।
इस धरती से गम जाय।।
कहती ह ये तपती धरती ।
वृ क ठंडक गम हरती।।
वृ ारोपण का अ भयान
ह गम का यह नदान।।
आओ मलकर वृ लगाएं ।
शीतल वातावरण बनाय।।