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किवता-हाय हाय गम                    -ि कल सहगल 
                                     क ा:-नवी 'ब' 
पारा हो गया चालीस पार। 
गम सर पर हुई सवार।। 
आ गया फर से जून मह न । 
रह रह क बस चले पसीना।। 
रात कट न, िदन ह भारी । 
गम क ह आफत जारी ।। 
गम ने यॅू खेला खले । 
पंखा, कू लर, ए.सी. फल। 
सिदय बार नहाएं , फर भी। 
गम कह न जाय,े फर भी। 
आइस म, कु भी खाई। 
पर श त हुई न गम माई। 
ख़रबज़ू ा, तरबज़ू ा, खीरा 
ऊं ट क मंहु म जसै े जीरा।। 
कर जतन ा कर उपाय। 
इस धरती से गम जाय।। 
कहती ह ये तपती धरती । 
वृ क ठंडक गम हरती।। 
वृ ारोपण का अ भयान 
ह गम का यह नदान।। 
आओ मलकर वृ लगाएं । 
शीतल वातावरण बनाय।। 

                                     
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