Page 31 - lokhastakshar
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सैली बलजीत
सैली बलजीत क7 कहािनय- क कथानक और पा<
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रोजमरा 9जंदगी क आम लोग होत ह। व अनेक स6मान-
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स अलंकत ह, 9जनम क2L"य #ह2द" िनदशालय (मानव
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संसाधन ?वकास मं<ालय) नई #दUली क #ह2द"तर भाषी
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#ह2द" लेखन क अंतग त ‘मुखौट- वाला आदमी’ कित पर
राीय पुर
कार *ा। अंतरा ीय #ह2द" स6मेलन मार"शस,
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पे8रस, हांलQड,
वीटज़रलैड, बेल9जयम तथा जम नी म
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स#)य भागीदार" तथा स6मािनत।
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कितयां: कहानी संह: अपनी-अपनी #दशाएं#दशाएं/गीली िमट"
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क 9खलौन/तमाशा हुआ था/अब वहां स2नाटा उगता ह/बापू
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बहुत उदास ह/यं<-पुeष/समंदर म उतर" लड़क7/मुखौट-
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वाला आदमी/घरtद स दूर/अंधा घोड़ाा/वह आदमी नह"ं था/यह नाटक नह"ं था/टqपरवास/घोड़ अब हांफ रह
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ह/तुम यहां खुश हो ना... च2Lमोहनन/पंजाब क7 Xेx लोककथाए/नंगी
ट- वाला मकान/यह मु?^ पथ नह"ं।
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उप2यास : मकड़जाल, नाटक: नागफिनय-- क दश म, लघुकथा : खाली हाथ और लपट, आज क दवता
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क?वता संह : ?पता जी जब घर मम होत ह, ग़ज़ल संह: छाँव खतर म ह,
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मरण: मेर आईन म, अपन-अपनन आईन,
मृितय- क तलघर
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संपा#दत कहानी संह: धूप म नंग पांव, कहर क #दन, खूबसूरत शहर और चीख
शी *काशय: मQ बहुत उदास रहता हूं इन #दन- (क?वता संह)
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तुम उस तलाशन मत आना
सैली बलजीत
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वह एकाएक मसखर--सी हरकतत ,य- करन लगा था? इस आ9खर" पड़ाव पर आकर सच ह"
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आदमी मसखरा हो जाता ह? वह कभीी-कभार लोग- क िलए मजाक का पा< ,य- बनन लगा था? #दनभर
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,या-,या नह"ं करता था वह... उसक77 #दनचया भी अजीब थी सुबह उठत ह" बस अड क बाहर वाल
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चाय क खोख को eख लेता... वहांां चाय पीना तो एक बहाना होता था... दरअसल अपन जैस ख#टयल
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लोग- स बितयान और समय काटनन का ब#ढ़या अडा था उसक िलए.... जमाल िमयां का चाय का खोखा,
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मई – जुलाई 31 लोक ह
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