Page 31 - E-Book 22.09.2020
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िवकास या िवनाश?
आशुतोष ीवा तव
शू य से शु आ, अनंत म आकाश है।
पुरापाषाण काल से, नवीनतम यास है।।
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वाथ ता क वेश म, कित का ास है।
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मनु य का िवकास ही, कित का िवनाश है।।
आरभ अ से या, वाहन का शोर है।
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ि ितज तक इमारत , धुंध चार ओर है।।
धरा से लेकर चाँद तक, खतम कहाँ ये आस है।
मनु य का िवकास ही, कित का िवनाश है।।
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कित ने या जनम, वही शोिषत आज है।
सतत् पोषणीय िवकास, अब िव का यास है।।
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“ कित र ित रि तः”, ह त नया काश है।
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मनु य का िवकास ही, कित का िवनाश है।।
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