Page 74 - CHETNA JANUARY 2020- FEBRUARY 2020 FINAL_Neat
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Vमलकर धूल-धूसLरत हो चुक/ थीं.  दल क/ 8कतनी ढेर सार  उ[मीद> पर उसने
        आस लगाई थी. कै से-कै से सपने देखे थे, परQतु एक पल नह ं बीता था 8क सब

        के  सब जल कर राख हो गये थे. इस Hकार 8क अब कह ं कोई उमंग नह ं बची
        थी.  दल मC कोई भी उ[मीद क/ इoछा तक नह ं शेष रह  थी. ये कै सी )बड[वना
        थी?  समय  क/  कौन  सी  उसके   साथ  क/  गई  `खलवाड़  थी.  =या  मजाक  था
        उसक/ िज़Qदगी के  साथ? परQतु 8कतना कड़वा सच उसक/ आँख> के  सामने था
        8क, जो क ु छ उसने समाज, धम,-bान क/ पु?तक> मC पढ़ा था वह तो सबका सब

        झूठ Zनकला. सच तो वह है जो वह अब देख रह  है. वह सच 8क गुनाह कोई
        करे और उसक/ सजा 8कसी दूसरे को Vमले. सोच-सोच कर शVश का सारा चेहरा
        ह   बुझ  गया.  इतना  अ}धक  8क  उसक/  आँख>  मC  उदाVसय>  के   सारे  बादल>  ने

        अपनी  काल   घटाएं  लाकर  पटक  द ं.  रो-रोकर  उसका  चेरा  ह   लाल  हो  गया.
        मुखड़े क/ आभा और रौनक भी समाqत हो गई.
             समय बीता तो शVश के   दल पर रखा हआ बोझ भी हका हो गया. उसके
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         दल  का  दुःख  तो  समाqत  नह ं  हो  सका  था  पर  8फर  भी  क ु छ  हद  तक  कम
        अवiय हो गया था. पLरि?थZतय> के  सामने वह झुक गई और अब उसने अपने

        नसीब से मुह™बत कर ल . 8कसी को भी उसने दोष नह ं  दया. ना तो Vशकायत
        क/ और ना ह  8कसी से क ु छ भी कहा. होठ बंद 8कये और चुपचाप अपने दुःख,
        अपने  दद,  को  पीती  रह .  बड़ी  खामोशी  के   साथ  अपने  सामने  आई  हई
                                                                        ु
        पLरि?थZतय> के  अनुक ू ल बनने क/ चेBटा करने लगी. उसने बनना-संवरना  और
        ¢ृंगार करना छोड़  दया. आँख> क/ झील सी गहराइय> मC Zनराशा अपनी बहत
                                                                        ु
         हफाज़त के  साथ अ}धकार जमाकर बैठ गई. चंद  दन> मC उसके  चेहरे  क/ सार
        आभा ह  समाqत होने लगी. वह उदास और गुमसुम रहने लगी. उसके  होठ> पर
        अब  हरेक  समय  फ/के पन  क/  गहन  परछाई  अपना  बसेरा  ?था_पत  बनाने  का

        Hयास  करने  लगी.  कई-कई   दन>  तक  वह  अब  अपने  घर  से  बाहर  ह   नह ं
        Zनकलती थी. फल-?वˆप वह अपने कमरे क/ मनहस खामोशी मC हर  दन घुटने
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        लगी. यूँ उसके  जीवन के  सारे चमकते हए उजाले अQधकार के  काले साए बनकर
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        उसे डसने लगे.
             इस तरह से शVश के  कई  दन और गुज़र गये. लगभग बीस  दन यूँ ह
        बड़ी तीÁता से Zनकल गये. शVश अपने कमरे मC एकांत मC बैठ• हई थी. इतने
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         दन> मC उसका कमरा भी उसको जैसे काट खाने को दौड़ने सा लगता था. वह

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