Page 26 - माँ की पर्णकुटी
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सीमा जी वा ण य-एक समाज से वका
सीमाजी वा ण य "वा ण य र न व. तेजपाल
वा ण य" द ल नवासी क पु ी ह व भुवन
वा ण य पु ी ी भगवान वा ण य (अतरौल )
क प नी ह । देहल म ह ज म व श ा के
बाद इंदरा-गॉ ं धी एयरपोट मे काय रत रह चुक
सीमा जी को बचपन से ह ब च से यार था,
बचपन म वे कभी कॉलोनी के ब च क
लाड़ल बुआ हआ करती, तो कॉलेज म एन एस
ु
एस के ज रए अ पताल म बीमार व पी ड़त ब च क से वका । इस काय के लए उनके माता- पता ने भी
कभी उ ह नह ं रोका। शाद होने के बाद प त के कहने पर नौकर छोड जयपुर आ बसी व पूर श दत के
साथ अपने प रवार के पालन पोषण म लग गई। पर घर क चार द वार म उनका मन ना लगा व पॉच
साल बाद ह उ होने कहना शु कर दया क ब च व उनक शा दय पर सम प त जीवन का या मोल है ?
नम ल भाव क सीमा जी म छ ु आछ ू त न था। भगवान राम वारा शबर के झूठ बेर खाने वाले
सं मरण ने ह उ ह इस बुराई से दूर रखा। उनक गल का कचरा लेने वाल दो बा लकाओं (आरती/ यो त) ने
एक बार चाय मांगी, सीमा जी ने तुरंत वा स य भाव से चाय बनाकर दो गलास म दे द । चाय पीने के बाद
ये बा लकाय उन गलास को थैले म डालकर ले जाने लगी। सीमा जी के टोकने पर वे बोल ‘‘हम अछ ू त ह ”
हमारे झूठे गलास को आप फ क ह द गी, तो हमने रख लए। सीमा जी ने वे गलास वापस ले लये व तुरंत
भीतर से दो नये गलास लाकर दे दये। ये गलास आज भी सीमाजी क रसोई म काम आ रहे ह । आज ये
कशोर अपनी भाई-बहन के संग, कॉलानी का कचरा लेने के प चात सीमा जी के घर उनसे पढने आती ह ।
सीमाजी आनथा म/वृ धा म जाकर ब च /बुजुग क सेवा करनी चाहती थीं I वे गृह था म से पलायन
कर नः वाथ भाव से पी डत व लाचार क सेवा पर जीवन सम प त करना चाहती थीं I ल बे समय के
क माकश के बाद सीमाजी को उनक मंिजल मल ह गई। मई 2012 से, ीमती सीमा वा ण य ब चो से
यार, तथा सामा य िज दगी के बजाय क ु छ अलग हट कर करने क चाहत के कारण ह श ा पथ मानसरोवर
जयपुर म , गाय ी नगर व तार के पीछे नाले के पास ि थत वा मी क क ची ब ती से जुडी। इस वा मी क
क ची ब ती म 110 वा मी क समाज के प रवार, झु गी-झोप ड़य म नवास कर रहे ह । इसी ब ती से दो
कलोमीटर दूर गाय ी नगर म प त व दो ब च के साथ नवास कर रह ं सीमा जी नह ं जानती थी क 18
साल से िजस मंिजल को वे तलाश रह थीं वह इतनी कर ब ह मल जावेगी।