Page 27 - माँ की पर्णकुटी
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सीमाजी  के   इस  ब ती  से  जुड़ने  क
                                                                  भी एक  दलच प कहानी है। संघ  ेरणा से अजय

                                                                  जी  व  सीमा  जी  के   पु    खर  ने  इस  वा मी क

                                                                  क ची  ब ती  म   पढ़ाने  जाना  शु    कया।  जब

                                                                   खर ने ब ती से आकर अपनी माता सीमा जी

                                                                  को ब ती के  बारे म   व तृत  प से बताया  क
                                                                  उस  ब ती  म   बहत  सारे  ब चे  ह   जो   क  पढना
                                                                                   ु
                                                                  नह ं जानते,  क ू ल  भी नह ं जाते तथा ब ती म

        पानी क   यव था नह ं होने के  कारण साफ-सफाई से भी नह ं रहते ह  I इस ब ती के  अ धकांश  बड़े एवं ब चे

        कचरा बीनकर अपना जीवन यापन कर रहे ह , िजन अयो य एवं उपयोग क  हई व तुओं को हम कचरा बना
                                                                                    ु
        फ  क देते ह , उससे इनका जीवन यापन होता है । शाम तक ये लोग बड़ी- बड़ी  लाि टक क  थै लय  म  कचरा

        बीन व घर  से इक ठा कर लाते ह , उसे छॉट कर अलग-अलग कर बजार म  बेचकर जीवन यापन करते ह  ।

        इसी जीवन शैल  को जी रह  य  प रवार। इस जीवन शैल  म  ‘ श ा’ श द का ना कोई मूल ना अथ  नजर
        आता है।


             इस वृतांत के  बाद उ क ृ  ट अ भलाषा के  चलते सीमा जी ने मन ह  मन  नण य  कया  क वे इस ब ती

        को ह  अपनी कम  थल  बनाय गी, इस अ ड़ग  नण य के  प चात् उ होने मुडकर नह ं देखा।  अगले ह   दन से

        उस ब ती म  जाकर ब च  को पढाने लगीं, जो  सलसीला आज तक अनवरत  प से जार  है।  ार भ म  ब च

        के   यार  से  शु   हआ  यह  सेवा काय      दन    त दन  आगे  बढते  जा  रहा  है। यह  एक  ऐसी  ब ती  थी जहाँ
                          ु
        सामा य  प रवार  क   म हलाएं जाना भी पसंद नह ं कर गी। शराब  पीना,   जुआ खेलना, आपस म  लड़ना  व
        सूअर के  मॉस का सेवन करना, यह  थी इनक    नय त ।


            एक ईसाई  मशनर  इस ब ती म  दोपहर म  आकर ब च  को खाना बॉ ं टकर चल  जाती थी । उ ह ने ब च

        क  ‘ईसु क   जय’ बोलना व ईसु के  लॉके ट पहनने  सखा  दये थे। 7-8 साल से काय रत वो ईसाई  मशनर ,

        क ु छ वष  बाद ब ती का धमा तरण करने म  कामयाब हो जाती,  क ं तु ई वर क ृ पा के  कारण एक बदलाव क

        लहर ने 2012 के  बाद से इस ब ती का जीवन-शैल  को बदल डाला I


             कचरा  बीनने को ह  िजंदगी क   नय त मानने वाल  ब ती के  ब च  ने,  ार भ म  पढने म    च ना ल ।

         ढ़  इ छा शि त  एवं क ु शा  बु  ध क  धनी सीमा जी हार नह ं मानी I आप  नवीन तर क  से ब च  का

        मन अपनी ओर खींचने का  यास करने लगीं ।  ब च  को पढ़ाने एवं सं का रत करने के  साथ-साथ   वयं को
        ह न समझने वाले ब च  एवं उनके  प रवारजन   को मन से गले लगाने लगीं व उनका इलाज अपने हाथ  से

        करने लगीं, उनक  झोप डय  म  बैठकर चाय पीने लगीं, ब च  के  साथ एक ह  थाल  म  भोजन करने लगीं।
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