Page 19 - Spagyric Therapy Part- 1st (5)
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    जीवन का एक मह वपण सार ह- ‘अ   व त  को  हण या  वीकार करना और नकसानदह त व  स बचना (या
                                                                                                             े

                                                                                                  े
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    उ ह  नकाल दना)। यह जीवन-म  आपक शरीर पर भी समान  प स लाग होता ह। याद रह, हमार  व  रहन क
                                                                                ू
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    श   हमार पाचन-त  स ही  मलती ह। अगर शरीर को ‘जीवन-पटरी पर चलन वाली एक गाड़ी’ मान ल तो पट
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    उसका ‘इजन’ ह। यह इजन  जतना ताकतवर होगा, गाड़ी बरोक-टोक, अपनी  नधा रत  ीड स चलती रहगी। और
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    अगर इजन म कोई खराबी आ गयी तो गाड़ी का सामा य ढ़ग स भी चल पाना मम कन नह  हो पाएगा।  ल  जग

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       या इजन क  मर मत क  तरह ह। इसम शा मल उपवास क     या शरीर क अग  को आराम दन का मह वपण
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                                                                                        ं

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    काय करती ह। यह  लवर को आत ,  कडनी और  वचा आ द क  सहायता स टॉ  स स को बाहर  नकालन क  लए
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      रत करती ह। नतीजतन र - वाह म सधार होकर शरीर क  व भ  अग  को सम चत मा ा म पोषक त व  क


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    आप त  होन  लगती  ह।   ल  जग  थरपी  क   सक पना  काफ   हद  तक  आयवद  क   सशोधन   च क सा  या  पचकम
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                                                                                                                  ं
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    जसी ही ह। यह बीमारी क मल म जाकर उसका समाधान  नकालती ह। म खद  लवर  ल ज कर चुाका  । मर कई
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                                                                                                                  े
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     म -प र चत भी इसको आजमा चक ह और हम सभी का मानना ह  क 18 घट क  यह    या     क शरीर का
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                                                                                    े

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    कायापलट कर दती ह। सबस बड़ी बात तो यह ह  क इस पर आन वाला खच ब त ही कम ह। इस आप खद अपन                                 े
                                                                       े
    घर क आरामदायक माहौल म कर सकत ह, वह भी  बना  कसी डॉ टरी परामश या दख-रख क।

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                                                                                         े
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    ⦁  ज रक थरपी
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    आज हम  जस माहौल म जी रह ह, वह हमार शरीर व सहत क  लए कतई उ चत नह  ह। जहा द खए वहा   षण,


                                                                                             ै
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    हम  जस हवा म सास ल रह ह उसम जहर भरा  आ ह, जो भोजन  हण कर रह ह उसम पौ  कता को छोड़ बाक
                                                            ै



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    सब कछ ह।  जन घर  म हम रह रह ह,कहन को तो व सवसाधन स   ह, पर उनम सरज क   करण  स हमारा
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                                                                                             ु

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                                                                                        े
                                                                                ै
    सामना  दन म एक-द  बार भी हो जाए तो गनीमत ह। क रयर क   चता, फ मली क  यचर को लकर तनाव, शरीर
                                                                                                       े
                                                             ॅ
             े
                                                                                                              े
                                                                          े
                                                              ं

    क  अनदखी कर एक ही समय म कई-कई काय  को अजाम दना, दर रात तक जागना आ द का हमार शरीर पर
                                                                     े
                                        े
                                                                                                                   े

              ु
                                                                                                     े
                                                                                     े
     कतना बरा  भाव पड़ रहा ह, इसस वा कफ होत  ए भी हम नावा कफ ह। जल पर नमक तो य  क इस बसक बाद
                                                      े
                                 ै
    भी हम उ मीद करत रहत ह  क य शरीर  कसी ‘फामला वन कार’ क  तरह ताउ  फराटा मार दौड़ता रह।
                                      े
                                                         ू

                              े

                        े

    ⦁  ल  जग

                                                                                                       ै
                                                                              ्
                              ै
                                                     े
                                    े
                                                           े

                                                े
    हमारी अ नय मत जीवनशली क कारण धीर-धीर हमार शरीर म टॉ  स स का जमाव होता रहता ह। एक समय बाद
                                                                                       े
                                         ँ
    यह जमाव  लड,  कडनी,  लवर, आत ,  वॉइटस और शरीर अपनी लगातार चलन वाली नस गक  ल  जग    या
                                                   ्
                                                  ं
                                                                                                ै


                                                           े
      े
                                                                                   े
                           ्

                                                                                                   े
                                   ू
    क तहत इन टॉ  स स को  य लाइज (उदासीन) करन या  फर उ ह शरीर स बाहर  नकालन क  भरसक को शश
                            े
                                                                              े
                                                                                   े

            ै
                                                                                                                   ू
    करता ह।  डटॉ  स फकशन क  इस    या म कोलोन,  लवर,  कडनी, फफड,  ल  और  वचा क  अहम भ मका
      े
                                                                            ॅ
    होती ह। ल कन हमारी आपाधपी भरी जीवनशली क चलत शरीर स टा  स स को बाहर  नकालन वाल उ  अग
                                                                                    ्
           ै
                                                                                                                      ं
                                                                                                        े
                                                                         े
                                                         े
                                                                े
                े
                                                    ै
                                                                                                             े
                                                                                                े
                                                                                         े

                                                                         े
                                   ै
    पर अ य धक भार पड़ रहा ह और वो अपन काम को सही ढग स अजाम नह  द पा रह ह। तमाम को शश  क                                 े
                                                                            ं
                                                                    ं
                                                  े
                                                                                                 े
                                                                                                                      ु
                                              ू
                                        े

    बावजद थोड़-ब त टॉ  स स हमार  ट यज म जमा रह ही जात ह। इनका हमार शरीर क  वा य पर कोई बरा
                 े

                                                                                        े
          ू
                                                                      े
                                  ्
                                                                                                        ू
     भाव ना पड़ या इ यन  स टम म कोई  रए न न होन पाए, इस लए शरीर इन टॉ  स स को  यकस या चब  स                              े
                                                                                                 ्
                          ू
                  े

                                                              े
                                                                                   ्
    घर रहता ह। बावजद इसक, वह समय भी आता ह जब शरीर म इन टॉ  स स का जमाव काफ  अ धक हो जाता ह
                        ू
       े

                                                       ै
                               े
                ै
      े
                                                                                                     ू
                                                                े

           े

                                                                                                               ै
                 े

                                                          े
    और व हमार शरीर क  काय मता को  भा वत करन लगत ह। हम थकान तथा कमजोरी महसस होती ह और हम

                                                                                              े
    बीमार होन लगत ह। ऐस म हमारी  ज मदारी बन जाती ह  क हम समय-समय पर अपन शरीर क   ल  जग करत                              े

               े
                                              े
                     े
                                                               ै

                              े
                                               े
                                           े
                                                          े

                                                                                   ्
               े
                            ं
                        े

                                                                                                 े
                                े
                                                                        े
    रह,  जसस शरीर क अग बहतर तरीक स काम करत रह। शरीर स टॉ  स स को  नकालन क  इस    या को ही
    ‘ ल  जग’ कहा जाता ह और अलग-अलग अग  क  ल  जग क तरीक  को  मलाकर  ल  जग थरपी बनी ह।


                                                 ं
                                                      े
                            ै
                                                                   े
                                                                                                               ै
                                                                                                    े
                                                                                                      े
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