Page 82 - lokhastakshar
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ग़ज़ल
ग़ज़ल अब य जाना #क इक #कताब हूँ मQ
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जो था नज़र- स ओझल, उग रहा ह हफ़ दर हफ़ लाजवाब हूँ मQ
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मेर सपन- म जंगल उग रहा ह
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आपन एतबार ह" न #कया
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मेर" आंख सुनहर" हो चलीं ह मQ तो कहती रह" सराब हूँ मQ
कोई बीता हुआ पल उग रहा ह
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मुझस अपनी नमी न सूख सक7
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मुझ ,या इक़ न #फर स छआ ह आप कहत ह आफ़ताब हूँ मQ
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मेर" सांस- म संदल उग रहा ह
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हो क मौजूद भी नह" #दखता
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त?पश न सोख ली नरमी ज़मीं क7 वो अमावस का माहताब हूँ मQ
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फलक प दखो बादल उग रहा ह
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उसस िमलत नह" उसूल 'सहर'
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जहां फली थी काली रात #दल म चाहती 9जसको बे#हसाब हूँ मQ
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वह"ं माह ए मुक6मल उग रहा ह - नीना सहर
- स6*ित : र ा मं<ालय म अनुभाग अिधकार" #दUली
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मई – जुलाई 82 लोक ह
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