Page 80 - lokhastakshar
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                       जानती  हूं  यह  तो  होना  ह"  था।  पर  #फर      “पगली  !  तू  भी  तो  #कसी  और  क7  ह।
                                                                                                     े
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                                                                                              ै
               भी  #दल  और  #दमाग  म  समतोल  नह"ं  बन  रहा।     सा#हर #फर भी तो qयार करता ह न तुझ। तू ,य-
                                                े
                            ै
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                                                                            ै
               #दल चाहता ह सा#हर कवल मेरा रह। #कसी अ2य          टांग अड़ाती ह।

               क7 बात- म नह"ं दख सकती मQ उसे। पर #दमाग                 मुझ कोई अ2तर नह"ं सूझता।
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               कहता ह, यह तो अटल ह। 
वयं मQ भी तो.....।                कमाल क7 हूं मQ भी। ,य- करती हूं मQ इस
                                                   े
               ले#कन मQ रावी नह"ं क?वता हूं 9जसने कवल सा#हर     तरह।  जानती  हूं....  पूर"  तरह  नह"ं  अपना  सकत
                                                                                                             े
                                                                                 े
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               को चाहा ह।                                       हम दोन- एक-दूसर को। #फर भी नह"ं सहन होता
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                       “क?वता  स  भूख  नह"ं  िमटती।  
वqन  एवं   मुझसे। नह"ं बांट सकती मQ सा#हर को #कसी और
                                                                          ै
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               वा
त?वकता म5 अ2तर पता ह तु6ह ?”                  क साथ। कसी मानिसकता ह ये।

                                                            ै
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                       मQ जानती हूं #कस भूख क7 बात करता ह              “तू  भी  कbजा  करना  चाहती  ह।  मद  ह"
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                                                                                                   ै
               सा#हर मगर उस तो कवल qयार क7 ह" भूख थी।           नह"ं औरत भी कbजा करना चाहती ह। पगली....
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               अचानक  यह  ÔभूखÕ  कहो  से  *कट  ह  गई  उसक       यह तो जायज नह"ं ह ना....
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               भीतर।  वह  स6पूण   औरत  क  िलए  तड़पता  ह।               जायज  नाजायज  क7  कशमकश  म5  उलझी
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                                                           ै
               इसीिलए  तो  
वqन  और  वा
त?वकता  म5  अ2तर        रहती हूं मQ आजकल, कब क?वता बोलती ह, कब
                                                                                                        ै
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               समझाने म5 लगा ह वह मुझ।                          रावी,  पता  भी  नह"ं  चलता।  कभी  दोन-  ह"  चुप
                                                                                                      े
                                                                       Q
                                                Q
                                                                                                  ै
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                       जब  ये  बात  याद  आती  ह  तो  स2तुलन     रहती ह..... #फर भी शोरगुल होता ह मेर भीतर।
                                                                                                          े
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               #हल जाता ह मेरा। पागल- क7 तरह {यवहार करन         चुqपी का यह 8रधम बेचैन बनाए रखता ह मुझ।
                                                           े
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               लगती हूं मQ। क?वता #दखाई दने लगती ह मुझ।                मQ  क?वता  हूं  या  रावी  फसला  नह"ं  कर
               वह  क?वता  जो  मेर  भीतर  बैठl  ह।  वह"  क?वता   पाती मQ। खुद स खुद ह" उUझी रहती हूं मQ।
                                                                              े
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               9जसे  लगाने  वाला  सा#हर  ह।  जो  तलाशता  नह"ं          “पगली ! लुFफ ले इस उलझन को
                         ै
               तराशता  ह।  वह"  सा#हर  #कसी  और  का  होन  जा           मQ रावी हूं ?
                                                         े
                     ै
               रहा ह। नह"ं सह पा रह" हूं मQ। क?वता और रावी      क?वता हूं ?
               म5  युO  चलता  ह  उस  पल।  ह  न  अजीब  सी        कौन हूं मQ ?
                                              ै
                                ै
               उलझन। मQ #कसका साथ दूं, समझ नह"ं पा रह"          कोई बताए तो सह"।
                                                                                                   ै
               मQ। दखा नह"ं मेरा दुखांत। एक क7 तो होकर भी       पर दखो..... सा#हर दूर होता जा रहा ह मुझस।
                                                                                                         े
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               नह"ं हो सक7 मQ और एक को पाकर भी नह"ं पा          दूर....दूर...और दूर.... मृग तृ;णा क7 तरह।
               सक7 मQ।                                          मQ दौड़ रह" हूं ? हांफ रह" हूं। इस अ2धे मा_थल
                                                       े
                       ऐमी मनोराग ?वशेषY को िमलने क िलए         म5।
                                                                 े
               कहता ह।                                          दखो ..... ह ना मेर" हालत पागल- जैसी।
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                                                                          ै
                                                     ं
                                                          ं
                                        ै
                       पर  कौन  जानता  ह  मेरा  दुख।  ऊची-ऊची   बताओ......
                                           ं
               रोने  लगती  हूं  मQ।  बेवजह  हसने  लगती  हूं  मQ।   रोक लूं या #फर जाने दूं उसे ?.....
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               क?वता बोलती ह उस पल।
                                                                                          स6पक : 9463215168

               मई – जुलाई                             80                                                                   लोक ह
ता र
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