Page 8 - E-Book 22.09.2020
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कित-संपूणा
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डॉ. ाची गंगवार
सदाबहार वन अगर इस धरती को शीतल छाया और समृि दान करते ह तो उसक गोद से
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िनकली धाराएँ अपने अमृत से न कवल धरती को स चती ह , वरन ाणीमा क जीवन को आधार भी दान
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करती ह । वन, वायु, जल, भूिम आकाश हमार िलए कित क अम य उपहार ह । मानव सं कित का िवकास
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इ ह उपादान क म य आ है। मानव ने अपनी सं कित व स यता का िवकास सव थम नदी घाटी से
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या है। न याँ हमार अि त व को बनाएँ रखने क िलए अमृत तु य जल देती है, इसिलए ये हमारी
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सां कितक धरोहर ह । वायु और जल, पृ वी पर जीवन क अि त व को बनाए रखन क िलए िनतांत
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आव यक है।
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वन का सदा से मानव-जीवन म िवशेष मह व रहा है। ाकितक संपदा ोत क प म ये
मह वपूण तो रहे ही ह , इनक उपयोिगता ाकितक संतुलन को बनाए रखने म भी है। कित ने उपहार-
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व प हम जो कछ भी या है, उसक दोहन का अवसर भी कित ने हम या है, तु गित क दौड़ म
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ब त तेजी से डग भरने वाला मानव ाकितक संतुलन को अ वि थत करने लगा है। यह भिव य म उसक
िवनाश का कारण बन सकता है।
वत मान समय म सं कित हासो मुख है और पया वरण िवघटन क ओर। इस दौर म मानव भौितक
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प से िजतना समृ होता जा रहा है, सां कितक और पयावरिणक दृि से उतना ही िवप पर ध य है इस
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देश क पावन धरा क मिहलाएँ, जो साँ कितक परपरा को बनाए रखने क बहाने इन ाकितक धरोहर क
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संर ण का सफल यास कर सं कित और पया वरण दोन को बचाए रखने म मह वपूण योगदान दे रही है।
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यह यास न कवल िव अनुकरणीय है अिपत तु य भी है।
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कित व पी मिहलाएँ वभाव से सरल दया, कम ठ कोमलतायु दृढ़ता और यागमयी गुण से
यु अ पूणा है, जो देना ही जानती है, लेने क आकां ा िजनम कभी नह रही, जो सेवा को अपना
अिधकार समझती है, इसिलए सा ा ी है, जो सं कित-संर ण क बहाने पया वरण संर ण करती ह । इस
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तरह िव इनक वा स यमय आंचल म थान पाता है, इसिलए ये जगत माता है। क यह स दयशाली
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अनुपम रचना जानती है कित पी अम य धरोहर क संर ण क िलए या या जाए? इसिलए वे
समाज क ही नह कित क भी संर क है।
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