Page 10 - E-Book 22.09.2020
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अपनी आ था क ओढ़नी म समेट रखा है। पीपल, आम, बरगद, नीम, बेल, अशोक, अजुन, तुलसी आ वे
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पिव वृ ह , िजनक पूजा करक मिहलाएँ अपनी धा क आ था को तो जीिवत रखती ही ह , साथ ही
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पयावरण को भी व छ बनाए रखती ह । नीम क पेड़ जहाँ होते ह वहाँ का पयावरण व छ ही रहता है।
हवा शु रखने क िलए पीपल का ब त योगदान है। पीपल रात म भी आ सीजन देता है। बरगद अपनी
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िवशालता क अनुसार वृहद े म दूषण कम करता है। यह कहना ब त क न है मानव स यता और
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पयावरण का ता तना पुराना है, तु िव णु पुराण क थम अंश म मनु य और वृ क बीच एक बेहद
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आ मीय संबंध का संकत िमलता है, िजससे यह िन कश िनकाला जा सकता है मानव क स यता और
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सं कित क िवकास म इन वृ क मह वपूण भूिमका रही है। यही कारण है आज लोग कहते ह समय
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बदल रहा है, मा यताएँ बदल रही ह , तु भारतीय सं कित म वृ क ित लोग क आ था और िव ास
य का य बना है।
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कछ वृ को अना काल से आज तक पूजा जाता है। लोक-आ था और लोक-िव ास क अित
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धा क ंथ म व णत इनक मिहमा, गुण एवं उपयोिगता वत मान म वै ािनक कसौटी पर भी खरी
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उतरती है। कछ वृ को वैसा ही स मान या जाता है जैसे पुरातन पु ष को या जाता है। कछ वृ
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कवल वंदनीय ही नह होते, अिपतु औषधीय गुण से प पूण होते ह , इसिलए वे से एवं उपयोगी होते ह ।
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कछ वृ शांितकारक होते ह , इसिलए य म सिमधा क िनिम इनक लकिड़य का योग या जाता है।
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इस तरह इन वृ क साथ हमारा गहरा आ मीय संबंध भी जुड़ जाता है। इन वृ क अ ययन से पता
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चलता है बरगद और पीपल मा वृ नह है, वरन अपने आप म एक संपूण पा ि थितक -तं (इको
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िस टम) ह । वन म ऐसे वृ अ य पौध क अि त व को बनाए रखने म मह वपूण भूिमका िनभाते ह ।
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अशोक वृ दूषण कम करने क अित औषिध क प म यु होता है। तुलसी क पौधे क भारत म
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देवी-तु य पूजा क जाती है, उसक जड़ म मिहलाएं ित न जल एवं सांयकाल तुलसी चबूतर पर दीपक
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जलाती है। दरअसल तुलसी का पौधा भी चुर आ सीजन िन कािसत करता है। उसक पि याँ पूणतया
हरी-भरी और अ यिधक ाणवान होती ह , इन पि य का सेवन कर एवं सुगंध पाकर रोग का िनदान
होता है एवं रोग िनरोधक मता का िवकास होता है।
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मिहलाएँ वृ ारोपण, बाग बगीचे, फल-फल वाल पौधे तथा सुगंिधत वा का लगाने म िच रखती
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ह , िजसका सीधा भाव घर प वार क सुख वा य पर पड़ता है और इस बहाने पया वरण संतुलन भी
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बना रहता है।
मिहलाएँ रा क धुरी ह वे सजगतापूवक पूरी सृि को संरि त रखने क साथ-साथ रा को एक
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सू म िपरोने का अभूतपूव काय कर रही ह । इनक यास से न कवल कित संतुलन क अ व था सुधर
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रही है अिपत िवकास क योजनाएँ भी दीघ जीवी हो रही है। यह सृजनशीलता बनी रहे, सव भवंतु सुिखनः
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