Page 9 - E-Book 22.09.2020
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िवचार कर तो मिहलाएं पयावरण संर ण क  ित  ाचीनकाल से ही सजग और सचेत रही ह ।

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                ाचीनकाल से ही वे जल शुि करण, सं हण एवं संर ण और वृ   क संर ण का  यास करती रही है।
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               बुजुग मिहला  ने सां कितक और धा क आ था  क बहाने जल एवं पया वरण क संर ण क िलए ऐसे-
                                                                         े
               ऐसे सामािजक आचार िवचार बनाए जो सभी युग और देश काल क िलए  ा  िस   ए जैसे पीपल और


                                                े
               बरगद क वृ   क पूजा करना, नीम क पेड़ क पूजा करना, सूय -चं मा को अ य देना, जल वायु अि  देवता
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               का पूजन, भूिम पूजन आ  इसी बात का सूचक है    ाचीन काल से ही मिहलाएं पयावरण संर ण म

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               योगदान देती आई ह । भारतीय मिहला  ने देश क कई पयावरण संर ण आंदोलनो म  भी अहम भूिमका
                                                                                                    द
               िनभाई है जैसे खेजड़ली आंदोलन, िचपको आंदोलन, नम दा बचाओ आंदोलन, नवधा या आंदोलन आ ।


                                                                                      ृ
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                       कालांतर म  रीित- वाज परपरा क  प म िनदेिशत होते  ए हमारी सं कित क  मुख घटक बन
                                                                                             े


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               गए। जैसे पु  क कशलता क कामना से रखा जाने वाला हलश ठी का  त। इस  त क िलए यहाँ क

               मिहलाएँ सगरी क पूजा करती ह । दरअसल यह सगरी वृहद तालाब है और कालांतर म सगरी का  प

                                                                          े
               धारण कर चुक है। इस सगरा म मिहलाएँ पानी डालती है। सगरी क चार  ओर वनोपज और वन पितयाँ


               लगाती ह  और दो सगरी क म य एक िछ  करती ह । ये  मश: जल सं हण,  दूषण को बचाए रखने और
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               जल शुि  क उपाय ह । हलश ठीवृत म  पलाश क वृ  क भी पूजा होती है।

                       इसी  कार गंगौर म यहाँ क मिहलाएँ गंगा नदी क  तीक  व प महानदी और अ य न य  क
                                                                                                   द


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               पूजा करती ह । कहने को तो गंगा मा  नदी है,   तु गंगा ने अिवि छ उव रता भारत को दी है। गंगा क न
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               टटने वाली धाराएँ अपने से अिधक जलभार वाली न य  को अपनी पीठ पर लादकर अनंत महासागर तक
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               प ँचाती है, ता  उनक जल को, ताप से भाप क पूण  प म सूय  क  रण  उठा ल और बादल  क मा यम

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                                                                                                  े
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               से िनखर  ए  प म  फर दरका द , ता  जल- सं हण क नरतरता बनी रहे।

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                       पित क दीघायु क िलए  या जाने वाले वट सािव ी  त म  मिहलाएँ वट (बड़, बरगद) का पूजन

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               करती ह  एवं अख ड सौभा यवती रहने क मंगल कामना करती ह । करवाचौथ क  त म  चं मा को अ य


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               देकर पूजा जाता है और तीज म सूय  को अ य  या जाता है। इस तरह मिहलाएँ  कित क पूजा क परपरा
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               को जीिवत रखकर सामूिहक लोक और नागर जीवन क अि त व क र ा का  यास करती ह ।

                       चूं  पयावरण और  वा  य दोन  क िलए ही  दूषण एक ज ल सम या है, अतः इस सम या से
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               िनदान क िलए मिहलाएँ वृ   क पूजा करती ह । मनु य क पृ वी पर ज म उपरा त उसक सम त उपयोग
                                                                                                  द
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               हेतु उसने वृ   का आसरा िलया। वृ   ने उसे रहने क िलए छाया दी, शरीर ढकने क िलए प े  ए, खाने
                                                                                       े

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               क िलए फल  ए एवं शु  वायु और जल  या िजसक बगैर जीवन अस भव है। भारत वष  क मिहला
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               का पयावरण संर ण म िवशेष योगदान है  य   उ ह ने पया वरण से जुड़े वृ , जल, वायु, फसल आ  को
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