Page 14 - E-Book 22.09.2020
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नदी क  था
                                                                   ं
                                                             िवभाष रजन




               म बंधी तो नह ,

               पर रोका है तुमने।


                       म खोलूंगी अपन,
                                    े
                       सार सपने।।
                          े
               न तुम दोष देना,

               जब िबखरोगे तूम सब।
                          ू
                       न ढढ़ पाओगे,
                       अपने को ही सब।
               यह मेरी  था है.........

               यह मेरी कथा है.........
                       जी पाओगे,

                        या तुम।।

               मचलता है मेरा,
               मन भी कभी तो।

                       होता है दद -ए,

                       तु ह  भी कभी तो।।
               बांध  क डोर म ,

               रखते हो मुझको।

                       लगता है, तुम
                       बांध पाओगे सच को।।

               नह  रोक पाओगे,

               मुझे इस जम  पर।
                       िबखर जाओगे खुद,

                       तुम अपनी धरा पर।।

               मुझे  यार दो, संवार दो..........

               पण  क माला से।
                       मुझे राह दो,

                       अपने मन क  वाह से।।
                                 े




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