Page 11 - Akaksha (8th edition)_Final pdf
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भारतीय लेखा त्ा लेखा-परीक्ा णवभाग                   महालेखाकार (लेखा एव हक)
                                                                                      ं
                महाणनदेशक, लेखा-परीक्ा का कायायालय,                  का कायायालय, कनायाटका,
                        क े नद्ीय, कोलकाता                      भारतीय लेखापरीक्ा त्ा लेखा णवभाग


                                                    ं
                                                                 े
             आपक  काया्षलय  विारा  प्रपरत  रािभारा  दहिी    आपक काया्षलय विारा रािभारा दहिी क प्रिार-
                  े
                                    े
                                                                                          ं
                                                                                              े
         पपत्रका  "आकाक्ा"  का  सातवा  अंक  पत्र  संखया  प्रसार हेतु प्रकानर्त रािभारा दहंिी पपत्रका "आकांक्ा"
                      ं
                                     ं
         दह.अ./1(17)19/खर-II/2013-14/2015-16/313  के  सांतवें अंक (वर्ष- 2019) की एक प्रनत प्राप्त हुई।
           ं
                          ं
             ं
         दििाक 23.09.2019 प्राप्त हुआ।                  रििातमकता स पररपण्ष पपत्रका का मुखपृष्ठ अतयंत
                                                                           ू
                                                                      े
                                                                                 ै
             पपत्रका  म  समापवष्ट  सभी  रििाए  अतयंत    ही मिोरम व मिमोहक ह। "समय का महतव",
                                              ँ
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                                                                 ं
                                                                                               ं
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         सुपाठय,  ज्ािवि्षक  और  संग्रहणीय  ह।  य  सभी   "सावंला रग", "भारतीय सुरक्ा बल", "साप और
                                                                                े
                                                                                              ँ
                                                          े
         रििाए अतयंत रूनिकर तथा प्रासंनगक भी ह।         िवला", "समृनत तक ही रह", आदि रििाए रूनिकर
                                                ैं
               ं
                                                                           ं
                                                        एवं सराहिीय ही िही बजलक संग्रहणीय भी ह। अनय
                                                                                               ै
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                     ें
             पपत्रका म प्रकानर्त रििाओं म स श्री मिोि
                                                        सभी रििाए भी पठिीय एवं पविारणीय ह।
                                                                   ँ
                                                                                              ै
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         कमार नतवारी का आलख "एकपक्ीय सथािातरण
                                                            आर्ा  करता  हूँ  दक  पपत्रका  की  गुणवत्ता  एवं
         की तुलिा म अजखल भारतीय सथािातरण", सुश्री
                     ें
                                           ं
                                                        रििातमकता म उत्तरोत्तर प्रगनत िारी रहगी।
                                                                                            े
                                                                      ें
         इद्राणी िािा विारा रनित "एक फालतू आिमी की
          ं
                                            े
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                                                  ं
         कहािी",  सुश्री  पपंकी  कमारी  का  आलख  "सावला  सिनयवाि।
         रग", श्री अनिबा्षि सिगुप्ता की कहािी "लछमी",
                            े
          ं
         सुश्री  अदविनतया  पॉल  का  लख  "िनम  स  पहल
                                   े
                                                      े
                                                े
                                                                                              भविीय,
         मृतयु",  सुश्री  कमला  िासगुप्ता  की  कहािी  "समृनत
                                                                                       उिय प्रताप नसंह
                                    े
         तक ही रह", सुश्री सोदहिी ि विारा रनित "समय
                   े
                                                                                ं
                                                                               दहिी अनिकारी/दहिी कक्
                                                                                              ं
                                ु
         का महतव", श्री सुनमत कमार जखरवाल की कपवता
         "सैनिकीः िर् क सुरक्ा कवि", सुश्री पप्रयम नसंह
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                                                                             ं
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         का आलख "प्रस की आिािी", श्री संटू साहा की          महालेखाकार (सा. एव सा. क्े. लेप.) का कायायालय
                      े
         कपवता "गुरू की भपक्त", श्री संिीत राय की कहािी                 ओण़िशा, भुवनेश्वर
                      ं
         "राहत  की  सास",  िीपक  कमार  नसंह  विारा  रनित
                                  ु
                                   ं
                                                    े
         "भारतीय सुरक्ा बल", सुश्री ििा नतवारी का आलख       दििाक 24.09.2019 क पत्राक- दह.अ./1(17)19/
                                                                               े
                                                                                        ं
                                                                                   ं
                                                                ं
         "भारतीय  नयायवयवसथा  म  पवलंब  एवं  समािाि"    खंर-II/2013-14/2015-16/386 क संबंि म आपक
                                 ें
                                                                                       े
                                                                                               ें
                                                                                                    े
         आदि पवनर्ष्ट रूप स सराहिीय ह।                  काया्षलय की दहिी पपत्रका "आकाक्ा" क तृतीय अंक
                           े
                                      ैं
                                                                      ं
                                                                                     ं
                                                                                          े
             पपत्रका क प्रकार्ि हतु संपािक मंरल को बिाई  की प्रानप्त हुई, एतिथ्ष िनयवाि।
                               े
                    े
         एवं इसकी प्रगनत और अगल अंक क प्रकार्ि हतु          पपत्रका का मुद्रण एवं छायाकि अनत आकर्षक
                                          े
                                   े
                                                    े
                                                                                     ं
         र्ुभकामिाए। ं                                  ह।  पपत्रका  की  पवरय-वसत  ज्ािवि्षक  ह।  पपत्रका
                                                                                             ै
                                                                                ु
                                                         ै
                                                        म  समापवष्ट  सभी  रििाए  उतकष्ट,  संग्रहणीय  एवं
                                                          ें
                                                                                     ृ
                                                                               ं
                                                        ज्ािवि्षक ह। पपत्रका क संपािि एवं संकलि हतु
                                                                   ैं
                                                                                                   े
                                                                             े
                                                                                                  ं
                                                        संपािक मंरल को सािुवाि तथा पपत्रका की निरतर
                                                                      ्ष
                                                               े
                                               भविीय,   प्रगनत हतु हादिक र्ुभकामिाए। ं
                                दहिी अनिकारी/रािभारा
                                  ं
                                                                                              भविीय,
                                                                              े
                                                                       वररष्ठ लखापरीक्ा अनिकारी (दहिी)
                                                                                                  ं
                                                                                                 11
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