Page 27 - Prayas Magazine
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मात्राएूँ (स्वर चिि)
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व्यजन क े बाद स्वरों क े बदले हुए स्वऱूप (साक े चतक ऱूप) को मात्रा कहते हैं। स्वरों की मात्राएूँ चनम्नचलचखत हैं:-
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स्वर मात्रा ( स्वर चिि ) व्यजन + मात्रा = अक्षर
अ अ वणष (स्वर) की मात्रा नहीं होती। क = क
आ ाा ( क + ाा ) = का
इ चा ( क + चा ) = चक
ई ाी ( क + ाी ) = की
उ ाु ( क + ा ) = क ु
ु
ू
ऊ ाू ( क + ा ) = क ू
ऋ ाृ ( क + ा ) = क ृ
ृ
ए ाे ( क + ा ) = क े
े
ऐ ाै ( क + ा ) = क ै
ै
ओ ाो ( क + ाो ) = को
औ ाौ ( क + ाौ ) = कौ
लेखन में मात्राएूँ हमेशा चकसी न चकसी व्यजन क े सार् ही प्रयोि में लाई जाती हैं। 'अ' वणष (स्वर) की कोई मात्रा
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नहीं होती। व्यजन वणों क े अपने मूल स्वऱूप में 'अ' स्वर अतचनषचहत होता है। चकसी मात्रा क े लिने पर यह अतचनषचहत
'अ' हट जाता है।
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व्यजन
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चजन वणों क े उच्िारण क े चलए स्वरों की सहायता ली जाती है, वे व्यजन कहलाते हैं। ये मूलतः सयाया में 35 हैं। इनक े
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चनम्नचलचखत तीन भेद हैं:-
9. स्पशष व्यजन
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2. उचत्क्षि व्यजन
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3. अतःस्र् (अड़तस्र्) व्यजन
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4. ऊष्ट्म (सघषी) व्यजन
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