Page 22 - Akaksha (8th edition)_Final pdf
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         कीजिए मुखिती िा, पूरी बसती एक हफ़त स गि  का कोई इसतेमाल िहीं करेगा। अचछा अभी िेखता
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         पािी स भरी पडी थी। बड िाल स पािी निकल  हूँ, आपके  नसंक के  िल को कया हुआ है। िल को
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         ही िही रहा था। आि िगरपानलका म िरिा िकर  खोल कर साफ करते समय बाकी किडे के  साथ
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         िाल की सफाई का काम र्ुरू करवाया और दफर  पलाजसटक की पनिी निकली। िीपक हँस कर बोला
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         यहा आया हूँ। आप पवविास िही करग, क्रि भर-       इिर भी पलाजसटक। आप लोग तो हम लोगों स
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         भर कर किडा उठाया गया ह और व किडा ह  बहुत  जयािा  पढे-नलखे  और  समझिार  हैं,  मगर
         पलाजसटक ही पलाजसटक, पलाजसटक की बोतल, बैग,  आप लोग भी पलाजसटक के  खतरे से अंिाि हैं।
         पनिी आदि। किडा इतिा भर गया था दक पािी  मुखिती  बाबू  िे  उसी  वक्त  प्रनतज्ा  की  दक  अगले
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         भी िही निकल रहा था। मरा बटा सकल म पढता  दिि से थैला लेकर ही बाजार िाएंगे और कभी भी
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         ह। वो कहता ह दक य पलाजसटक हजार सालों म  पलाजसटक  बैग  या  पनिी  िहीं  माँगेंगे।  पलाजसटक
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         भी िही गलता ह। आि हम सब बसती वालों ि  के  खतरे से आि उनहें एक अमूलय सबक नमला
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         नमलकर फसला दकया ह दक बसती म पलाजसटक  गया था।
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         नो् - पूर िर् म साल भर 940 करोड दकलो पलाजसटक किडा उतपनि होता ह, जिसम स 40% पलाजसटक
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         असंग्रहीत रह िाता ह। पपछल 70 साल म अथा्षत 1950 स लकर पूर पववि म लगभग 830 करोड टि
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         पलाजसटक किड का उतपािि हआ ह, जिसम 60% अथा्षत 498 करोड टि पलाजसटक नमटटी और हमार
                                                                                                     े
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         पररवर् म िष्ट होि योगय किडा क दहसाब स रह गया ह, नसंगल-युि पलाजसटक क वयवहार क कारण
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         यह पलाजसटक किडा और भी कई गुिा बढ िाएगा। कोलकाता म एक समीक्ा क िौराि 310 पवक्रताओं
                                                                                 े
                                                                   ें
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         और 630 क्रताओं (कल 940 वयपक्तयों) स प्रश्न दकया गया था दक वो नसंगल-युि पलाजसटक बैग क खतर
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         स दकतिा वादकफ ह। उिम स 167 पवक्रता (54%) एवं 365 क्रता (58%) िवाब दिया था दक वो 40
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         माइक्रि स कम घि पलाजसटक बैग का इसतमाल करत ह!       ैं
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                          अगि हहंदुस्ान को सिमुि आग बढ़ना ह ्ो िाह कोई मान ्या न मान,
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                          िाषट्रभाषा ्ो हहंदी ही बन सक्वी ह, ््योंकक जो स्थान हहंदी को प्राप्
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                          ह, वह ककसवी औि भाषा को नहीं समल सक्ा ह।
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