Page 44 - lokhastakshar
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                                                                                               ृ
                      ै
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               सdा  ह,  जो  मनु;य  म5  आशा  और  भय  उFप2न       ?वशेष संबंध बोध ह जो मूलतः *कित को 
वयं स
                       ै
                                                                                                 े
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               करती  ह।  इस  पर  काबू  पाने  क  िलए  मनु;य      अलहदा मानने वाली }?y से ज2म दता ह। प9zम
                                       ै
                                                            े
                                                      ृ
                   ं
               िनरतर  *यासरत  रहता  ह।  यह  संबंध  *कित  क      म5 इस }?y का ?वशेष _प से ?वकास हुआ। इस
                                                                                              ृ
               सामने  अश^  मनु;य  क7  
वयं  को  बचाने  और       ?वचारधारा  का संबंध, अंततः *कित पर ?वजय क
                                                                                                             े
                                                                         े
                                                                                 ै
                                                                                       े
                                                                                                          ृ
               अपनी सामgय  को पहचान पाने  क7 एक अनवरत           उप)म क साथ ह। गहर म5 यह }?y भी *कित
                                                                                                             े
                                                                            े
               चलने वाली *यासभूिम क7 तरह का ह। इस संबंध         को मनु;य क अनुकल बनाने का *यास करने स
                                                                                  ू
                                                  ै
               म5  ?वनाश,  सृजन  और    9जजी?वषा  क7  *वृ?dयां   जुड़" है। परंतु इस }?y के  पीछे यह भाव  िछपा
                                                           Q
               हमेशा एक दूसर क 9खलाफ लड़ाई लड़ती रहती ह।          होता  ह #क *कित अनंत और अ य §ोत- वाली
                                                                       ै
                                                                               ृ
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                                े
               इसका  ल‡य  मनु;य  क7  *कित  पर  संभा?वत          होती  ह,  9जस  पर  ?वजय  पाने  से  मनु;य
                                                                       ै
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                                                                                                       ै
                                                          ै
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                                                                                                           ै
                                            े
               ?वजय क7 उ6मीद  क _प म5 दखा जा सकता ह।            सव श?^मान  या  अितमानव  हो  सकता  ह।  दवी
                                                                           े
               दो : एक दूसर }?yकोण से अपार श?^, सामgय           आधार  वाल  अनेक  िमथक  इस  तरह  क7  अनेक
                             े
                                                                             े
                                                                                 े
                                                                                    Q
                                        े
               और रह
य से यु^ होने क कारण *कित मनु;य            कथाओं  से  भर  पड़  ह,  9जनम5  मनु;य  को  शैतानी
                                                   ृ
                                                                               े
                                                                                  ृ
                                                                         े
                                                  े
                                                      ै
                                े
               को  पूGय  व
तु  क  _प  म  #दखाई  दती  ह।  #फर    श?^य- क सहार *कित पर ?वजय पाते हुए #दखाया
                                        5
                                                                       ै
                                   े
               जब मनु;य *कित क *ित *ाथ नारत होता ह तो           जाता ह।
                                                         ै
                             ृ
               *कित  उसे अपने अ य §ोत- म5 से भोuय पदाथ          इसस आगे चलकर यह ?वचार पैदा हुआ #क *कित
                                                                                                          ृ
                                                                    े
                  ृ
               *दान  करती  ह।  इस  *कार  *कित  को  *स2न         क7 आप8रसीम संभावनाओं का उपयोग मानव समाज
                              ै
                                              ृ
               करने  क  िलए #कये  जाने वाले    अनेक  *कार क     क सामू#हक #हत म5 #कया जा सकता ह। शैतान क
                                                            े
                                                                                                            े
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                                                                                                    ै
                                                                                             ै
                                                                                                      े
                                                  Q
                                                                                           े
                                                                                      ृ
               कम कांड और अनुxान *कट हो जाते ह।                 समांतर यह ?वचारधारा *कित क दवीकरण क *यास-
               तीन:  एक  अ2य  }?yकोण  से  *कित  और  मनु;य       से सामने आई।
                                              ृ
               क बीच पूरक संबंध होते ह। मनु;य 
वयं *कित         बाद म जब मनु;य ?वYान क ?वकास क एक ऊचे
                                        Q
                                                                                                    े
                 े
                                                                                          े
                                                                                                           ं
                                                          ृ
                                                                      5
                                                   ृ
               का पु< या पित हो सकता ह  और *कित मनु;य           
तर तक पहुंचा, तब उसे यह समझ म5 आने लगा
                                         ै
                                                                       ृ
               क7 माता या  सहचर"। इस तरह क संबंध क7 बात         #क  *कित  क7  अप8रिमत  संभावनाएं  भी  अंततः
                                              े
                                                   े
                                                                                                             ै
                            ृ
                                                                        ै
                    े
               हमार यहां *कित-पुeष या िशव-श?^ क संबंध- क    े   सीिमत ह। जहां तक ¦ांड का अपार ?व
तार ह
                               े
               _प म5 #दखाई दती ह। वेद- म5 अ2य< Ô पु<ोऽहम ्      वहां तक तो यह संसाधन- क अनंत होने क7 बात
                                                                                          े
                                   Q
               पृथी{याम ् Õ कह कर *कित को माता और मनु;य को      समझ आ सकती ह, परतु जहां तक *s पृgवी क
                                                                                     ं
                                                                                  ै
                                                                                                            े
                                    ृ
                                                                              ै
                                                                                                         ृ
                                                                                                   े
                                     ै
               उसका पु< कहा गया ह। यह संबंध पर
पर पूरक,         संसाधन- का ह, वहां बहुत जUद हमार  *ाकितक
                                                                          े
                                                      ै
                                                                                   े
                                                                                                      े
               उFसव धम| और _पांतरकार" *तीत होता ह।              संसाधन- क §ोत- क संकट 
त होने क हालात
                                                                                                       ृ
                                                                                Q
                       े
                  ृ
               *कित  क  साथ  मनु;य  का  जो,  भय  और  आशा        सामने आ जाते ह। इस तरह ?वYान ने *कित क7
                                                                                                             े
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                             ै
               वाला  संबंध  ह  उसका  आधार  *कित  क7  अपार       बाबत मनु;य क7 सोच और समझ को  गहराई स
                                                े
                                े
                                                            े
               अनंत  श?^य-  क  अिनयं?<त  होन  और  उनक           बदल #दया।
                                                    े
                                                                                            ै
               सामने  ?ववश  होकर  असुर9 त  होने  क  बावजूद      जहां  तक  यूरोप  का  संबंध  ह  वहां  मनु;य  को
                                            े
               अपनी संघष शीलता म5 आ
था क साथ ह। यह एक           *कित  से  अलहदा  मानन  क7    *वृ?d  *धान
                                                                                         े
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                                                                   ृ
               मई – जुलाई                             44                                                                   लोक ह
ता र
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