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मनु;यFव का बाहर क पदाथo पर आरोपण करता दूसर से जुड़" हुई Xृखलाओं क7 तरह ह। इस
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ह। इस मनोवैYािनक #)या का *योजन यह होता Xृखला म5 एक कोिशक7य जीव पहले ह और
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ह #क वह जो आरोपण ह वह उस व
तु से मनु;य जैसे बहुकोशीय ज#टल संरचना वाले जीव
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अलहदा हो कर आ9खरकार जब लौटता ह, तब आ9खर" सीढ़" पर ह।
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मनु;य को अपने
व क7 *ाि होती ह। यह
वयं भारतीय दश न- म5 इसे चेतना क ?वकास)म क7
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को जानने क7 एक *#)या ह जहां मनु;य क तरह दखा गया ह। इसीिलए ईZर क ?विभ2न
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भीतर क7 *कित, पहले
वयं को बाहर क पदाथ अवतार- क _प म5 भी जैव अवतार- को एक
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पर * ?पत करती ह, #फर जब वह यह दखती ह िसलिसले क7 तरह *
तुत #कया गया ह। वे डा?व न
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#क बाहर का पदाथ उसक7 आंत8रक *कित क
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क ?वकास )म से कछ हद तक मेल खा जाते ह,
मुता?बक {यवहार नह"ं करता, तब उसे अपनी परतु हमार यहां ?वकास को बाहर क7 *कित और
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आंत8रक *कित एक तरह क छायाभास क7 तरह जीवो क7 दह क7 *कित क )िमक ?वकास क7
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वा?पस लौटती *तीत होती ह। इस तरह मनु;य तरह ह" नह"ं दखा गया, अ?पतु यह माना गया #क
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बाहर" *कित क ज़8रए आ9खरकार अपनी छाया यह सब चतना क ?विभ2न
तर- म5 )िमक _प
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को
वयं म समा#हत करक, अपने आप को जानन से ?वकिसत होत जाने का प8रणाम होता ह। सुषु
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क और कर"ब होता जाता ह। अव
था से जागृत अव
था क7 ओर आती हुई
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प9zम क ?वचारक- क7 यह }?y उनक इस ?वचार चतना ?व?वध *कार क7 *ाणीगत दह- से होकर
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से जुड़" हुई ह #क बाहर क7 *कित म कोई अपना सफर तय करती हुई आ9खरकार मनु;य
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मानवीय अंतर-संरचना मौजूद नह"ं होती। जब#क तक पहुंचती ह।
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भारत क दश न *कित को भी जी?वत व
तु मानत इसका अथ यह ह #क *कित को पूजने का वह
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ह। वे *कित म5 मनु;य जैसी चतना का संचार *योजन नह"ं ह 9जसे प9zम क दाश िनक यह
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दखते ह। वे कवल इतना कहते ह #क बाहर क7 कहकर खा8रज करते ह #क भारत क लोग *कित
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*कित म5 मनु;य क7 चतना क समान जो उसक7 को अपने वश म5 करने म असमथ होने क कारण
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अपनी चतना ह, वह सुषु अव
था म5 होती ह। उसक सामन घुटन टकत हुए #दखाई दत ह। व
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मनु;य म5 वह चतना जागृत 9
थित म5 आ जाती कहते ह #क जब *कित को वैYािनक _प स
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ह। जड़ पदाथo से लकर मनु;य तक चतना का जीतना संभव नह"ं होता, तब ह" मनु;य *कित क
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?वकास ?व?वध *ा9णय- क लंबे इितहास वाल सामने दास- या भ^- क7 तरह िगड़िगराया करता
?वकास )म क Vारा होता ह। इसे वे चौरासी लाख ह। यह जो }?yकोण ह इसे हम एंगेUज़ और
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योिनय- तक चलने वाल सफर क7 तरह दखते ह। मा,स जैस महान प9zमी दाश िनक- क िचंतन म
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प9zम म5 डा?व न ने 9जस ?वकास )म को भी दख सकते ह। परतु जो बात प9zम समझ
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वैYािनक िसOांत क7 तरह हमार सामने रखा, उसक नह"ं पाता ह वह यह ह #क हमार यहां *कित क7
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पीछ उसक7 यह सोच #दखाई दती ह #क सभी और उसक ?व?वध _प- क7 जो पूजा ह, वह *कित
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*ा9णय- क7 दह गहर म5 ?वकास)िमक _प म5 एक क भय स उपजी हुई पूजा नह"ं ह। अ?पतु वह
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मई – जुलाई 48 लोक ह
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