Page 48 - lokhastakshar
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ै
                                                                                    ं
                                   े
               मनु;यFव का बाहर क पदाथo पर आरोपण करता            दूसर  से  जुड़"  हुई  Xृखलाओं  क7  तरह  ह।  इस
                                                                    े
                                                                  ं
                                                                                                        Q
                 ै
               ह। इस मनोवैYािनक #)या का *योजन यह होता           Xृखला  म5  एक  कोिशक7य  जीव  पहले  ह  और
                                          ै
                 ै
               ह  #क  वह  जो  आरोपण  ह  वह  उस  व
तु  से        मनु;य  जैसे  बहुकोशीय  ज#टल  संरचना  वाले  जीव
                                                        ै
               अलहदा  हो  कर    आ9खरकार  जब  लौटता  ह,  तब      आ9खर" सीढ़" पर ह।
                                                                                 Q
                                                  ै
               मनु;य को अपने 
व क7 *ाि होती ह। यह 
वयं         भारतीय  दश न-  म5  इसे  चेतना  क  ?वकास)म  क7
                                                                                              े
                                                            े
                                            ै
               को  जानने  क7  एक  *#)या  ह  जहां  मनु;य  क      तरह  दखा  गया  ह।  इसीिलए  ईZर  क  ?विभ2न
                                                                                 ै
                                                                       े
                                                                                                    े
                            ृ
               भीतर  क7  *कित,  पहले  
वयं  को  बाहर  क  पदाथ    अवतार-  क  _प  म5  भी  जैव  अवतार-  को  एक
                                                      े
                                                                          े
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                      े
                                  ै
               पर * ?पत करती ह, #फर जब वह यह दखती ह             िसलिसले क7 तरह *
तुत #कया गया ह। वे डा?व न
                                                                                                   ै
                                                            े
                                                      ृ
               #क  बाहर  का  पदाथ   उसक7  आंत8रक  *कित  क
                                                                 े
                                                                                                            Q
                                                                                   ु
                                                                क ?वकास )म से कछ हद तक मेल खा जाते ह,
               मुता?बक  {यवहार  नह"ं  करता,  तब  उसे  अपनी      परतु हमार यहां ?वकास को बाहर क7 *कित और
                                                                  ं
                                                                                                      ृ
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               आंत8रक  *कित  एक  तरह  क छायाभास क7  तरह         जीवो  क7  दह  क7  *कित  क  )िमक  ?वकास  क7
                                                                           े
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                                           ै
               वा?पस  लौटती  *तीत  होती  ह।  इस  तरह  मनु;य     तरह ह" नह"ं दखा गया, अ?पतु यह माना गया #क
                                                                              े
               बाहर"  *कित  क  ज़8रए  आ9खरकार  अपनी  छाया        यह सब चतना क ?विभ2न 
तर- म5 )िमक _प
                              े
                        ृ
                                                                                े
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                          5
               को 
वयं म समा#हत करक, अपने आप को जानन            से ?वकिसत होत जाने का प8रणाम होता ह। सुषु
                                                                                                      ै
                                                                               े
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                                        ै
               क और कर"ब होता जाता ह।                           अव
था  से  जागृत  अव
था  क7  ओर  आती  हुई
                       े
                                                  े
                                                                  े
               प9zम क ?वचारक- क7 यह }?y उनक इस ?वचार            चतना  ?व?वध  *कार  क7  *ाणीगत  दह-  से  होकर
                                                                                                  े
                                                 ृ
                                                       5
               से  जुड़"  हुई  ह  #क  बाहर  क7  *कित  म  कोई     अपना  सफर  तय  करती  हुई  आ9खरकार  मनु;य
                              ै
               मानवीय  अंतर-संरचना  मौजूद  नह"ं  होती।  जब#क    तक पहुंचती ह।
                                                                             ै
               भारत क दश न *कित को भी जी?वत व
तु मानत           इसका  अथ   यह  ह  #क  *कित  को  पूजने  का  वह
                                ृ
                                                            े
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                                                                                 ै
               ह।  वे  *कित  म5  मनु;य  जैसी  चतना  का  संचार   *योजन  नह"ं  ह  9जसे  प9zम  क  दाश िनक  यह
                 Q
                                               े
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                                                                                               े
                       Q
               दखते  ह।  वे  कवल  इतना  कहते  ह  #क  बाहर  क7   कहकर खा8रज करते ह #क भारत क लोग *कित
                                               Q
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                                                                                     Q
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                                     े
               *कित म5 मनु;य क7 चतना क समान जो उसक7             को अपने वश म5 करने म असमथ  होने क कारण
                                           े
                  ृ
                                                                                                      े
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                                                           ै
                              ै
               अपनी  चतना  ह,  वह  सुषु  अव
था  म5  होती  ह।   उसक  सामन  घुटन  टकत  हुए  #दखाई  दत  ह।  व
                                                                                 े
                                                                           े
                                                                                                         Q
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                                                                                       े
                                                                                                             े
                                                                    े
                                                                                                     े
                                                                                    े
               मनु;य म5 वह चतना  जागृत 9
थित म5 आ जाती          कहते  ह  #क  जब  *कित  को  वैYािनक  _प  स
                              े
                                                                                     ृ
                                                                       Q
                                                                                                             े
               ह।  जड़  पदाथo  से  लकर  मनु;य  तक  चतना  का      जीतना संभव नह"ं होता, तब ह" मनु;य *कित क
                 ै
                                                     े
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               ?वकास  ?व?वध  *ा9णय-  क  लंबे  इितहास  वाल       सामने दास- या भ^- क7 तरह िगड़िगराया करता
               ?वकास )म क Vारा होता ह। इसे वे चौरासी लाख        ह।  यह  जो  }?yकोण  ह  इसे  हम  एंगेUज़  और
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               योिनय- तक चलने वाल सफर क7 तरह दखते ह।            मा,स  जैस महान प9zमी दाश िनक- क िचंतन म
                                                                                                             5
                                                                          े
                                                                                                   े
               प9zम  म5  डा?व न  ने  9जस  ?वकास  )म  को         भी  दख  सकते  ह।  परतु  जो  बात  प9zम  समझ
                                                                                Q
                                                                                     ं
                                                                     े
                                                                                                       ृ
               वैYािनक िसOांत क7 तरह हमार सामने रखा, उसक        नह"ं पाता ह वह यह ह #क हमार यहां *कित क7
                                                                                     ै
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               पीछ  उसक7  यह  सोच  #दखाई  दती  ह  #क  सभी       और उसक ?व?वध _प- क7 जो पूजा ह, वह *कित
                                                                                                          ृ
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               *ा9णय- क7 दह गहर म5 ?वकास)िमक _प म5 एक           क  भय  स  उपजी  हुई  पूजा  नह"ं  ह।  अ?पतु  वह
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               मई – जुलाई                             48                                                                   लोक ह
ता र
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