Page 50 - lokhastakshar
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               तो  उनक  ज़8रए  हम  *कित  क  िन6न  और  उSच        क7    मूल  *कित,  9जन  *वृ?dय-  क7  अिभ{य?^
               
तर को जान सकते ह और इस तरह अपने भीतर            चाहती ह वे स यता और सं
कित क सdा ?वमश
                                                                                            ृ
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                          े
               ह" *कित क िन6न _प- से उSचतर _प- क सार            और {यव
था क िलए खतरनाक मानी जाने लगती
                                                           Q
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                                                                                           े
               को उपलbध करने  क7 ओर *
थान कर सकते ह।            ह।  इस  तरह  मनु;य  क7  दह  क7  *कित  और
                                                                                                             े
                                                                        े
                                                                                         े
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               प9zम म5 9जस *कार *कित पर ?वजय *ा करत            समाज क बीच एक तरह क ?वरोध को *कट होत
                                                                 े
                                                                           ै
               हुए  उसक  दोहन  शोषण  का  माग   िनकला  और        दखा जाता ह।
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               *कित  को  मनु;य  क  िलए  उपयोगी  उFपाद-  म       9जस  *कार  मनु;य  दह  का  दमन  होता  ह,  उसी
                                                            5
                                                                                                        ै
                                                                                 े
               बदलने क7 एक बड़" होड़ शु_ हो गई, उसी *कार          *कार  पृgवी  क7  दह  का दमन  भी, उसी  तरह  क7
                                                                                            ै
               प9zम का स यता और सं
कित ?वमश  भी मनु;य           सोच क7 
वभा?वक प8रणित ह। यहां  यह ?वचार
                                          ृ
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               दह  क  साथ  जुड़"  उसक7  *कित  को  उसी  *कार      भी सामने आता ह #क 9जसे हम खती-बाड़" कहते
                                           ृ
                                                                                 ै
                                                                                                 े
               अपने  अनुकल  बनाने  और  {यव9
थत  करक  उस         ह वह दरअसल धरती क7 उपजाऊ  मता क साथ
                                                            े
                                                                 Q
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               समाजोपयोगी  बनाने  पर  जोर  दता  ह।  फको  न      छड़छाड़  अिधक  ह।  वह  *ाकितक  #क
म  क7
                                              े
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               मनु;य दह को आधुिनक और उdर-आधुिनक सdा             उव रता  क7  बजाए,  इस  उव रता  का  अिधक
                                                                                     ै
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               ?वमश   क  उस  अ~  क7  तरह  दखा  ह  9जसका         उFपादनमूलक शोषण ह। उव रता का दोहन शोषण
                        े
               *योग  पुिलस,  िच#कFसा  और  िश ण  से  संबंिधत     भी गहराई म पृgवी क7 दह का दमन और दोहन
                                                                            5
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               सं
थाएं  करती  ह  और  स यताकरण  क  नाम  पर       ह।  यह"  9
थित  जंगल-,  पहाड़-,  समुL,  नद",  ताल-,
                                                                                               ै
               अंततः दह और उसक7 मूल *कित का दमन #कया            हवा और समूच पया वरण क7 भी ह।
                                           ृ
                                                                             े
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               करती ह।                                          9जस  तरह  क7  स यता  और  सं
कित  का  ?वकास
                                                                                               ृ
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               मनु;य  दह  क  िलये    उसक7  अपनी  *कित  क        मानव  जाित  ने  #कया  ह,  वहां  बाहर"  *कित  क
                                                                                                            े
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               मुता?बक  अिभ{य?^  संभव  बनाने  लायक  हालात       दमन,  दोहन  और  शोषण  क7  बात  इसिलए
                                                                                                             े
               अभी तक मानव समाज िनिम त नह"ं कर सका ह।           अिनवाय ता मौजूद हो गई ह, ,य-#क उसी क सहार
                                                           ै
                                                                                         ै
                                                                                                       े
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               स यता  और  सं
कित  क  ?वकास  क  दौरान  उUट       *कित क7 अिधकािधक उपादयता को हािसल #कया
                                ृ
                                                            े
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                                    े
               हुआ  यह  ह  #क  धीर-धीर  मनु;य  क7  दह  का       जा  सकता  ह।  इसक  उलट  भारत  जैसे  दश-  म5
                           ै
                                                       े
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               अिधकािधक  अनुकलन,  {यव
थापन  और  अंततः           अभी भी यह ?वचार बार बार दोहराया जाता ह #क
                                ू
                                                                                          े
                                                                                     ृ
                                  ै
               दमन  #कया  गया  ह।  ˆायड  ने  मनु;य  िचd  क      मनु;य  का    बाहर"  *कित  क  साथ  संबंध  मनु;य
                                                            े
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               भीतर मौजूद कठा को मनु;य क7 दहगत *वृ?dय-          क7 आंत8रक *कित म5 मौजूद *कितपूजा क भाव
                                                े
                                                                               ृ
               क दमन क7 तरह दखा था। उनका यह मानना था            से जुड़ा हुआ होना चा#हए, ता#क दोन- म तालमेल
                                 े
                                                                                                     5
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                                   े
               #क य#द मनु;य क7 दह क7 मूल *कित और उसस            हो सक। य#द मनु;य क7 आंत8रक *कित म5 लोभ,
                                                                                                  ृ
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               संबO  *वृ?dय-  को  
व
थ  सामा9जक  अिभ{य?^        मोह,  प8रह  आ#द  क7  *वृितयां  अिधक  होगी  तो
               *दान  क7  जा  सक,  तो  एक  बेहतर  समाज  क        वह *कित क दोहन शोषण का कारक हो जाएगा।
                                 े
                                                                           े
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               {यवहार _प- को हम अपने सामने च8रताथ  होता         इ2ह  भारतीय  िचंतन  म5  मनु;य  क7  िचdगत
                                                                                                         ं
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               दख सकगे। परतु होता इसक उलट ह। मनु;य दह           ?वकित का नाम #दया गया ह। #हसा, लोभ, अहकार,
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                 े
               मई – जुलाई                             50                                                                   लोक ह
ता र
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