Page 51 - lokhastakshar
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                      े
               ई;या ,  Vष  आ#द  *वृ?dय-  को  भारतीय  िचंतन  म   पदाथ  और चतना क जोड़- क _प म5 मौजूद पात
                                                                                                             े
                                                                            े
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               मानविचd  क  ?वकार-  क7  तरह  दखा  गया  ह।        ह। िशव और श?^ क _प म5  पुeष और *कित
                                                                 Q
                                                े
               मनु;य क7 मूल *कित तभी सामने आती ह, जब            का  यह  जोड़ा,  भारतीय  िचंतन  परपरा  म,  िमथक
                                                                                                ं
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                                                                                                      5
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                                                                                                      ै
               इन  ?वकितय-  स  मनु;य  अपने  आप  को  अलहदा       आ यान- क7 तरह अ,सर #दखाई दता ह। बाहर"
                       ृ
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                                                                                     े
               कर पाता ह।                                       *कित  क7  ओर  से  दखा  जाए  तो  बात  उसक7
                                                                                      ै
                                                                                          ं
               इस  तरह  दखा  जाए  तो  प9zमी  िचंतन  और          सामgय  और श?^ क7 ह, परतु य#द हम आंत8रक
                           े
                                                                   ृ
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                                                                                                             े
                                                                                   े
                                                                                     े
               भारतीय  िचंतन  म5  सतह"  _प  म5  दूर"    अवƒय    *कित क7 िनगाह स दखते ह तो बात चतना क
                                                                                      ै
               #दखाई दती ह, परतु गहराई म5 इन दोन- *कार क7       िशवFव  क7  हो  जाती  ह।  इस  तरह  दो  तरह  क7
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               िचंतन पOितय- क7 मं9ज़ल एक ह" *तीत होती ह।         पर
पर  ?वरोधी  मालूम  पढ़ने  वाली  ?वचारधाराए
                                                           ै
                                                                                                           े
                                                                        े
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                            ै
               वह  मं9जल  ह  #क  कसे  मानव  समाज  को  उसक7      एक दूसर से संबंिधत होने क माग  पर चल दती
                                                                 Q
               मूल  *कित  को,या  बाहर"  *कित  क  
व
थ  और       ह।  इस  िशव  श?^  वाले  िमथक  म5  
पy  #दखाई
                                                े
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                                                                 े
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                                                          ै
               नैसिग क ?वकास को उपलbध #कया जा सकता ह।           दता ह #क गहराई म5 यह पर
पर पूरक होन क7
                                                                        ै
                                                                9
थित ह। इस म5 िशव ह" अिधक महFवपूण  नह"ं
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                  ृ
               *कित  म5  मानवीय  तFव-  को  दखना  य#द  आदश
                                                                 ै
                                                                ह,  *कित  भी  अनेक  
थल-  पर  अपनी  ऐसी
                                                                      ृ
                                ृ
                                                 ै
               ?वचारधारा का *कित पर आरोपण ह, तो यह तो
                                                                                         े
                                                                                              ै
                                                                अिभ{य?^  करती  #दखाई  दती  ह  जहां  हम  िशवा
                                                            5
                                    ै
                                            ृ
               माना  ह"  जा  सकता  ह  #क  *कित  भी  गहराई  म
                                                                को िशव क व 
थल पर अपने पैर रखकर नाचत
                                                                                                             े
                                                                          े
               जीवन  को  ज2म  दने  वाली  संरचनाओं  क7  ओर
                                  े
                                                                      े
                                                                                                 े
                                                                            Q
                                                                         े
                                                                हुए  दखत  ह।  इस  *कार  दोन-  क  बीच  *ेम,
                                                       े
               अंत?व कास  करती  ह।  य#द  हम  *कित  क  इस
                                                  ृ
                                  ै
                                                                पर
परता  और  पूरक  अंत?व रोध  को  संतुिलत  और
                                    5
                                                े
               जीवनमूUक प  को कL म5 ला सक तो भारतीय
                                                                संबंिधत बनाए रखने क7 चतना कL म5 आ जाती
                                                                                               5
                                                                                         े
                                   े
               और प9zमी दश न- क बीच क7 दूर" को बहुत हद
                                                                 ै
                                                                ह।
                                         ै
               तक कम #कया जा सकता ह।
                                                                इस  ?वचारधारा  को  हमार  समय  म5  और  अिधक
                                                                                       े
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                                                       Q
               दह मूलक }?yकोण दो तरह क हो सकते ह, परतु
                                                           ं
                                                                ?वकिसत  करने  तथा  *ासंिगक  बनाने  क7  ज़_रत
               जीवन को लेकर ये दोन- }?yकोण एक धरातल पर
                                                                                  े
                                                                                                   े
                                                                ह।  अब  *कित  क  दोहन  शोषण  क  प8रणाम
                                                                            ृ
                                                                 ै
                              े
               आकर एक दूसर क पूरक होने लगते ह।  बाहर"
                                 े
                                                    Q
                                                                           े
                                                                                                             े
                                                                                                       ृ
                                                                
व_प, उसक गभ  से *कट होने वाली ?वकित क
                  ृ
                        े
                                                       ै
               *कित  क  भीतर  से  जीवन  ज2म  लेता  ह  और
                                                                तांडव को हम अपनी आंख- क सामने *कट होता
                                                                                           े
               ?वकास  करता  ह,  तो  दूसर"  तरफ  आंत8रक  *कित
                                                          ृ
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                                                                 े
                                                                दख रह ह।
                                                      े
                                              Q
                                े
               क भीतर जीवन क वे _प होते ह जो उस बाहर"
                 े
                                                                          ृ
                                                                                                        े
                                                       े
               *कित  क  साथ  तालमेल  रखने  और  उसक  साथ         ऐसे म5 *कित और मनु;य क7 आपसदार" क िलए
                  ृ
                       े
                                                                                े
                                                            े
                                                       े
               एक पूरक क7 तरह जीवन जीने क7 ओर ल जात             हम5  नई  तरह  क  अथ तं<  और  नई  तरह  क7
                                                                    ृ
                 Q
               ह।                                               सं
कित  का  ?वकास  करने  क7  बाबत  सोचना
                                                                  े
                                                                पड़गा।
                                          ृ
               ऊपर  हमने  मनु;य  और  *कित  क  बीच  क  एक
                                                       े
                                               े
                                                                                                    े
                                                                                               ृ
               तीसर  संबंध  _प  क7  चचा   भी  क7  थी।  इसे  हम   नया  अथ   तं<  वह  होगा  जो  *कित  क  अंधाधुंध
                    े
                                                                                           ृ
                                          ृ
               भारतीय िचंतन धाराओं म5 *कित और पुeष, अथवा        दोहन  शोषण  क7  बजाय  *कित  को  बनाए  और
               मई – जुलाई                             51                                                                   लोक ह
ता र
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